Wednesday, May 27, 2009

याद आयेंगे कुछ कर दिखाने के हौसले वाले दिन..

याद रहेगा अमित से रोटियां छिपा कर खाना पटना : चिन्तामणि प्रसाद गया के पटवा टोली में रहता है। उसके पिता दीनदयाल प्रसाद बुनकर हैं। काम में उनकी पत्‍‌नी भी मदद करती है। छह बच्चों के अपने कुनबे को चलाने में दीनदयाल को जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और चिन्तामणि इस बार आईआईटी की परीक्षा में सफल हो गया। पटवा टोली के इस होनहार छात्र ने पहली बार अपने मुहल्ले पटवा टोली के एमडीएम स्कूल में दाखिला लिया। इसके बाद उसका नामांकन ब्राइट हाउस स्कूल में करा दिया गया। इस स्कूल में उसकी फीस माफ हो गई। जहानाबाद से उसने प्राइवेट छात्र के रूप में मैट्रिक की परीक्षा 87.6 फीसदी अंक से पास की। बाद में धनबाद से प्राइवेट छात्र के रूप में 12 वीं की परीक्षा दी और 89 फीसदी अंक प्राप्त किया। छह भाई बहनों में सबसे छोटा चिन्तामणि मगध सुपर-30 का किशोर कुमार था। चिन्ता को मगध सुपर -30 में अपने दोस्तों के साथ बिताये गये पल हमेशा याद रहेंगे। खासकर अमित से अपनी रोटियां बचाने के लिए लगाने वाली दौड़ को। अधिकारियों से मिलकर होता था गर्व : हमारे गांव जलालपुर में पुलिस का खौफ है। लोग आज भी पुलिस वालों को देखकर सहम जाते हैं। नक्सल प्रभावित इस गांव का विक्रम राज जब पहली बार अभयानंद व उनके अन्य आईपीएस दोस्तों से मिला तो काफी गौरवान्वित महसूस किया। मैट्रिक तक की पढ़ाई जलालपुर में ही की। उसके बाद गया कालेज में नामांकन कराया। चार भाई बहनों में सिर्फ उसकी दीदी ही बड़ी है। बाकी सब उससे छोटे हैं। सौभाग्य रहा कि सुपर-30 में चयनित हो गया। यहां अभयानंद सर व उनके मित्रों ने काफी मनोबल बढ़ाया। अब तो मेरे पिता को मुझपर काफी गर्व है। वे अदालत में अपने मित्रों से अक्सर मेरे संबंध में ही बातें करते हैं। 16 भटूरे खाकर बनाया रिकार्ड : निजी स्कूल के शिक्षक का पुत्र अमित कद-काठी में काफी तगड़ा है। गया जिले के लखीबाग का रहने वाले अमित के साथ उसके पड़ोस का सुमित आनंद भी मगध सुपर-30 में ही पढ़ता था। बताता है कि पंकज सर मुझे काफी मानते हैं। एक बार उनकी पत्‍‌नी हमारे यहां आई। उन्होंने सभी बच्चों के लिए छोला भटूरा बनाया। मैंने व सुमित ने खाना शुरु किया। सबसे पहले खाने बैठे थे और सब के खाकर उठ जाने के बाद तक लगातार खाते ही रहे। इस दौरान मैंने 16 भटूरे खाये। यह भी सुपर-30 के लिए एक रिकार्ड है। रोआं-रोआं ऋणी है समाज का : पथ निर्माण विभाग के दफ्तरी कमला प्रसाद सिंह का पुत्र कुणाल सुपर-30 के सफल छात्रों में एक है। छपरा का मूल निवासी उसका परिवार पिछले 25 साल से गया में ही रह रहा है। कुणाल बताता है कि उसकी दीदी भी गया कालेज की थर्ड टापर थी। इस वर्ष सीबीएसई की 12 वीं में 89.4 प्रतिशत अंक हासिल करने वाले कुणाल को सुपर-30 के नाम व अपने सीनियर्स से शुरु में थोड़ा डर लगा। लेकिन वहां के माहौल ने उसके डर को समाप्त कर दिया। कुणाल मानता है कि माता-पिता के बाद समाज ने उसके लिए बहुत किया। उसका रोआं-रोआं समाज का ऋणी है। कुणाल चाहता है कि जिस तरह अभयानंद सर ने समाज की मदद से मेरे जैसे लड़कों को जीवन में सफल बनाया। वैसा ही कुछ करने का मौका ईश्र्वर उसे भी दें। मेहनत करने में भी मजा आया : अनिल प्रसाद अपने घर में ही छोटी सी दुकान चलाते हैं। तीन बेटियां व एक बेटा है। बेटा सबसे छोटा है। नाम है अमित। जिसे मगध सुपर-30 में अमित-1 नाम दिया गया। पिछले साल 12वीं की परीक्षा पास की। आईआईटी की तैयारी में जुट गया। भौतिकी उसके मामा पढ़ाते थे, जबकि बाकी दोनों विषयों के लिए वह ट्यूशन पढ़ता। पिछली बार वह किसी भी इंजीनियरिंग की परीक्षा में सफल नहीं हुआ। इसी बीच सुपर-30 में उसका चयन हो गया। यहां माहौल ऐसा था कि मजा आता। कोर्स पूरा करने के लिए शिक्षकों ने भी जी-तोड़ मेहनत की। सो जाने के बाद अपने कोचिंग से शिक्षक लौटते और बच्चों को जगा कर रात दो बजे तक पढ़ाते। कोर्स पूरा करने के लिए एक दिन में छह घंटों तक क्लास लिया। इसके बाद टास्क देते। उसकी जांच करते। दोस्तों में भी रहती गहरी प्रतिस्पर्धा : भागलपुर में हिन्दी के शिक्षक रंजीत के पुत्र गौरव ने सुपर-30 की मदद से इस बार आईआईटी में प्रवेश हासिल किया है। बताता है कि मगध सुपर-30 के सभी बच्चों में अच्छी दोस्ती थी। लेकिन उनके बीच गहरी प्रतिस्पर्धा भी थी। गौरव बताता है कि पढ़ते तो सभी हैं, लेकिन आईआईटी में सफल होने के लिए आवश्यक है कि पढ़ाई की पूरी योजना तैयार की जाये। अभयानंद सर यही सिखाते। हमें बताते कि परीक्षा के 3 घंटों का हम किस तरह बेहतर ढंग से सदुपयोग करें। शिक्षकों के पढ़ाने के बाद भी वह कम से कम 10 घंटो स्वाध्याय में बिताता था। सब एक ही तरह सोचते थे : अविनाश के पिता जी भवनेश्र्वर शर्मा खेती करते हैं। जबकि उनकी मां प्रेम कुमारी सिंह गया मध्य विद्यालय की शिक्षिका हैं। उसका बड़ा भाई अभिषेक आईटी कंपनी में काम करता है। मगध सुपर-30 के विषय में बताता है कि वहां सभी बच्चों की सोच एक थी। कुणाल उसका सबसे अच्छा मित्र था, लेकिन चिन्तामणि व अमित बहुत अच्छा गाते हैं। अविनाश बताता है कि जब पढ़ते-पढ़ते थक जाते तो घर बंद कर इन दोनों से गाना सुनते।

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