Saturday, February 4, 2012

आह नहीं ! वाह बिहार बोलो !

 रविवार सुबह लगभग 9 बजे। उड़ीसा के खिलाड़ियों को लेकर एक बस बीएमपी-5 में पहुंचती है। बस से उतरते ही सभी खिलाड़ी नवनिर्मित विश्वस्तरीय बास्केटबाल कोर्ट की तरफ बढ़ते हैं।  कोर्ट का निरीक्षण कर लौट रहे सीआरपीएफ की टीम से हमारी मुलाकात होती है। कोर्ट,  बिहार की मेजबानी और व्यवस्था के संबंध में पूछने पर सीआरपीएफ का खिलाड़ी कहता है भाई पूछो मत ,आह!  टीम के आगे चल रहे सीआरपीएफ के बास्केटबाल टीम के टीम मैनेजर संजय सिंह कहते हैं, अरे आह नहीं, वाह बिहार बोल यार! टीम मैनेजर के इतना कहते ही सीआरपीएफ के सभी खिलाड़ी बिहार पुलिस की मेजबानी, यहां के ग्राउंड, कोर्ट और व्यवस्था की तहे दिल से सराहना करने लगते हैं। खिलाड़ियों ने माना कि उन्हें भी कतई विश्वास नहीं था कि बिहार में विश्वस्तरीय कोर्ट पर उन्हें खेलने का मौका मिलेगा। कुछ ऐसा ही एहसास झारखंड टीम और उसके कोच को भी है। सुबह में इसी कोर्ट पर बिहार पुलिस और झारखंड पुलिस के बास्केटबाल के संयुक्ताभ्यास के दौरान झारखंड  के बास्केटबाल टीम के कोच जे राघवेन्द्र जो खुद बास्केटबाल के राष्टÑीय स्तर के खिलाड़ी रह चुके हैं ,  कोर्ट की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह कोर्ट विश्वस्तर का है। उन्होंने भी बिहार की मेजबानी और आतिथ्य सत्कार की प्रशंसा करते हुए कहा कि अतिथि खिलाड़ियों की सुविधा का बेहतर ख्याल रखा जा रहा है। बाहरी खिलाड़ी भी बिहार के बदलते स्वरुप से काफी प्रभावित नजर आए। किसी भी राज्य की टीम अभ्यास के लिए बीएमपी ग्राउंड पहुच रही है बिहार पुलिस और बीएमपी के जवान उसकी सुविधा और सहुलियत का पूरा ध्यान रख रहे हैं। स्थिति यह है कि खिलाड़ियों के विश्राम स्थल पर सुबह ही बसें भेज दी जाती हैं ताकि वे अभ्यास के लिए ग्राउंड में आ सके। इसके लिए पुलिस विभाग ने दर्जनों प्राइवेट बस भाड़े पर लिए हैं। बिहार को मेजबानी के लिए मिले इस मौके में ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन भी साथ दे रहा है। आयोजन समिति के अध्यक्ष सह राज्य के डीजीपी अभ्यानंद ने बताया कि आयोजन समिति के पदाधिकारियों की एक बैठक पूर्व में ही एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ हुई थी,  जिसमें उनसे यह आग्रह किया गया था कि जिस किराये पर वह चुनाव में अपनी गाड़ियां देते हैं उसी दर पर वह इस खेल के आयोजन में भी अपनी गाड़िया दें , जिसे ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सहर्ष स्वीकार तो किया ही जरूरत पड़ने पर हर तरह से सहायता का भी आश्वासन दिया। बिहार पुलिस के आलाधिकारियों और आयोजन समिति को यह विश्वास है कि वर्षों बाद बिहार को मिले इस इस मौके को यादगार तो बनाएंगे ही इसे इस सफलतम मुकाम पर पहुंचाएंगे कि ऐसे मौके बिहार को बार-बार मिलते रहें। अगर बिहार इन खेलों की सफल मेजबानी कर सका तो संभव है आने वाले दिनों  उसे खेलों की सबसे बड़ी प्रतियोगिता आॅल इंडिया पुलिस एथलेटिक्स मीट के भी आयोजन कराने की जिम्मेदारी सौंप दी जाए।

न्याय का दिखा दम, अपराध हुआ कम


न्याय का दिखा दम, अपराध हुआ कम

 

संजय उपाध्याय | फरवरी 3, 2012 18:30
 
लोग इसे बिहार का 'स्वर्णद्वीप' भी कहते हैं. यहां के करीब 75 हजार लोग खाड़ी देशों में रह कर हर महीने करोड़ों रूपये भेजते हैं. यहां की मनी आर्डर अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत है कि निजी छोड़ कर अकेले लीड बैंक के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीयकृत बैंकों में 3,600 करोड़ रूपये जमा हैं. यहां एडिडास के सफेद जूते पहने और महंगी बाइक पर सवार युवक आमतौर पर दिख जाते हैं. लालू-राबड़ी शासन काल में यहां किसी लोकतांत्रिक सरकार का नहीं, बल्कि यहां के बाहुबली सांसद रहे शहाबुद्दीन का सिक्का चलता था. कुछ साल पहले सीवान एक खौफनाक जगह थी, जहां दिनदहाड़े हत्या, अपहरण आम था. तेजतर्रार आईपीएस-आईएएस अधिकारियों को भी वहां के सांसद रहे शहाबुद्दीन के साथ समझौता करके रहना पड़ता था. पर, वे दिन अब नहीं रहे. 2005 में चुनाव आयोग की सख्ती और 2006 में स्पीडी ट्रायल की शुरुआत से ही बिहार की राजनीतिक-सामाजिक फिजा बदलने लगी थी. फिलहाल, शहाबुद्दीन सीवान जेल में ही सलाखों के पीछे हैं. अब, वहां 'शहाबु' या 'साहेब' की नहीं, कानून की चलती है. दिन क्या...रात में भी लोग वहां अब बेधड़क घूमते नजर आ जाते हैं. 

अकेले शहाबुद्दीन ही बदल रहे बिहार के नजीर नहीं हैं. अलग-अलग जगह के क्षत्रप, जो सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था को ही हाईजैक कर चुनाव की हवा को अपने पक्ष में कर लेते थे-वे भी सलाखों के पीछे हैं. उदाहरण के तौर पर अपराध के घोड़े पर सवार सतीश पांडेय (गोपालगंज), राजन तिवारी (चंपारण), मुन्ना शुक्ला (तिरहुत), आनंद मोहन (सहरसा),पप्पू यादव (पूर्णिया-सहरसा) तथा बिंदु सिंह (जहानाबाद) के जमाने लद गए, जब वे अपराध को अंजाम दे-दिलाकर कानून की लंबी-जटिल प्रक्रिया का लाभ उठाते हुए जमानत लेकर बाहर या वारंट लेकर जेल के भीतर स्टेट गेस्ट का मजा लेते रहते थे. आलम यह है कि स्पीडी ट्रायल के तहत करीब 65 हजार अभियुक्त सलाखों के पीछे हैं. 

गंडक के दुर्गम दियारे से लेकर चंपारण के घने जंगल यानी बिहार के मिनी चंबल के डाकुओं को 80 से 90 के दशक में सत्ता के गलियारे में भी घूमता देखा जाता था. दिन-दहाड़े लोगों को उठा लेना और फिरौती वसूलने का काम इनका जंगल उद्योग बना हुआ था. डकैतों के इन गिरोहों में सबसे खतरनाक सरगना वासुदेव यादव के खिलाफ यूपी, बिहार और नेपाल में दर्जनों अपराध दर्ज थे और पुलिस उसे पकडऩे में नाकाम. करीब तीन दशकों की फरारी के दौरान उसने संवाददाता को बताया था कि पुलिस के आला हुक्मरान तक उससे अपराधी को पकडऩे के लिए मदद की गुहार लगाते हैं. 

फिलहाल, वह आत्मसमर्पण कर बेतिया जेल में है. उसके साथ, भांगड़ यादव, सतन यादव और रासबिहारी यादव भी वहीं खिचड़ी खा रहे हैं. सूबे के पुलिस महानिदेशक बनने से कई वर्षों पूर्व चंपारण में दस्यु उन्मूलन अभियान की लगाम थामे अभयानंद ने बताया कि 'पहले सजा देने की प्रक्रिया धीमी थी. स्पीडी ट्रायल, स्पेशल कोर्ट व फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से लंबित पड़े मामलों की सुनवाई की गई. इनमें स्पीडी ट्रायल की भूमिका अहम है. जनवरी, 2006 से दिसंबर, 2011 तक 65 हजार से भी अधिक अभियुक्त सलाखों के पीछे हैं. करीब 150 को तो फांसी की सजा सुना दी गई है.' 

दिलचस्प यह है कि मोटरसाइकिल लूट के एक मामले में पुलिस और स्पीडी ट्रायल ने इतना तेज काम किया कि जनवरी, 2012 में अपराध घटने के महज 10 दिनों में ही सजा सुनाकर देश में एक मिसाल पेश की है. 12 जनवरी को तीन लुटेरे पिस्तौल और देसी रिवॉल्वर के साथ मोटरसाइकिल लूटते पकड़े गए, 14 जनवरी को पुलिस ने चार्जशीट जमाकर स्पीडी ट्रायल के लिए कोर्ट से गुहार लगाई. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने दैनिक स्तर पर मामले की सुनवाई करते हुए 23 जनवरी को तीन वर्षों तक सश्रम कारावास की सजा सुना दी. 

हाल के दिनों में स्पीडी ट्रायल नतीजों से उत्साहित पुलिस महानिदेशक ने घोषणा की है कि अब तीन महीने के भीतर ही फैसला सुना दिया जाएगा. पुलिस अधिकारियों के अनुसार जूनियर अफसरों द्वारा की गई जांच-पड़ताल के कार्यों की वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर की जा रही मासिक समीक्षा और विजिलेंस के भय से भी अपराध निरोधी माहौल तैयार हुआ है. लोगों में जागृति भी आई है. अपराध होने पर लोगों का आक्रोश सड़कों पर भी दिखने लगता है. नतीजा, निचले स्तर पर भी पुलिस सख्त हुई है. स्पीडी ट्रायल में तो चश्मदीद अथवा गवाह को मुकरने का मौका तक नहीं मिलता.

पहले गवाह को रूपये-पैसों का लालच अथवा डरा-धमकाकर मुकरने के लिए बाध्य कर दिया जाता था. सीवान के आरक्षी अधीक्षक अमृत राज कहते हैं, 'अपराध के खिलाफ त्वरित कार्रवाई  हो रही है.' हालांकि, अब भी जर्मनी से अधिक जनसंख्या वाला बिहार बाढ़, नक्सल व जातीय द्वेष से उबर नहीं सका है, लेकिन अपराध के मसले पर नकेल इस तरह कसी है कि, पलायन कर रहे व्यापारी लौटने लगे हैं.

बहरहाल, अपराधियों को जेल से निकलने के बाद भी चैन नहीं मिलने वाला. 14 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने घोषणा की है कि सभी अपराधियों के कृत्यों को वेबसाइट पर डालते हुए उन्हें किसी तरह का लाइसेंस, पासपोर्ट तथा अन्य उन सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा, जो एक बोनाफाईड नागरिक को मिलता है, ताकि जेल से छूटने के बाद भी उन्हें अहसास होता रहे कि उन्होंने कभी अपराध किया था. मतलब, एक तरह का सामाजिक दंड. प्रथम चरण में 1,450 लोगों की सूची बिहार सरकार ने वेबसाइट पर जारी कर दी है. जल्द ही अन्य लोगों सूची को भी साइट पर जल्द डाल दिया जाएगा. स्पीडी ट्रायल के बाद अपराध नियंत्रण के मामले में यह अपने किस्म की एक अलग ही पद्धति है.

Wednesday, February 1, 2012

Bihar to frame policy for police jobs to sportspersons: Nitish

Patna, Feb 1 (PTI) Bihar government will formulate a policy to provide jobs to sportspersons with distinguished achievements in the police department, Chief Minister Nitish Kumar said today. The recruitment would be made in the ranks ranging from constable to the DSP, Kumar said after inaugurating the 60th All India Police Volleyball (Cluster) Championship at the BMP premises here. The government was also considering a proposal to give out-of-turn promotion to policemen who shine in sporting events at the national and international level, he said. Stating that the state government was committed to promote sports at the grassroot level, Kumar said all required infrastructure would be put in place for that. The Chief Minister directed the DGP, Abhayanand, to devise a schedule to hold state level sports meet for the police personnel every year. A few years ago the state was known for lawlessness, he said and lauded the police department for helping transform Bihar to a "peaceful and law abiding" state. The chief minister said the growth in the inflow of tourists in Bihar could be attributed to the changed perception of the state as a law abiding and peaceful place.