Tuesday, December 27, 2011

समय बदल रहा, हम भी बदलें

दैनिक जागरण , पटना संस्करण लिखते हैं : 

पटना, कार्यालय संवाददाता : समय बदल रहा है, हम भी बदलेंगे। समस्याएं हैं पर उनके समाधान के कदम भी उठाए जा रहे हैं। पुराने समय से चली आ रही व्यवस्था धीरे-धीरे ही ठीक होगी। पुलिस के सामने भी कई प्रकार की मजबूरी होती है। संविधान के अनुसार ही काम करना पड़ता है। पहले जांच कर लें, फिर एफआईआर लिखें, ऐसा संभव नहीं है। उक्त बातें डीजीपी अभ्यानंद ने शनिवार को कहीं। उन्होंने बिहार चैम्बर आफ कामर्स के सभागार में आयोजित बैठक में पहले व्यवसायी वर्ग की समस्याएं सुनीं और बाद में क्रमवार उनका जवाब दिया। बैठक में उद्यमी समुदाय की ओर से पुलिस महानिदेशक अभ्यानंद का स्वागत करते हुए कहा गया कि उनके कार्यभार ग्रहण करने के बाद से अपराध में जिस तेजी से गिरावट आई है, वह अपने आप में सुखद है। समाज में भयमुक्त वातावरण बना है। संगठित अपराध पर विराम लगा है। आज देश के उन राज्यों की श्रेणी में सूबे की गिनती तीसरे नंबर पर होती है, जहां अपराध दर काफी कम है। बैठक में प्रमुख रूप से ट्रैफिक की समस्या को रखते हुए कहा गया कि सीनियर अफसर से मिलते वक्त लगता है कि उनकी बात सुनी जा रही है, पर थाने आज भी पुरातन शैली में ही काम कर रहे हैं। व्यवहार देख थाने जाने पर भय लगता है। बैठक में उठी समस्याओं पर क्रमवार बोलते हुए डीजीपी अभ्यानंद ने बेतिया के एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि टेलीफोन पर मिली शिकायत के बाद 6 दिसंबर 11 को एफआईआर लिखी गयी और अब तक चार गवाही भी गुजर चुकी है। आप लोगों ने झूठे मुकदमे में फंसाने की जो बात कही है, उसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि शिकायत मिलने के बाद पहले जांच और फिर प्राथमिकी संभव नहीं है। झूठे मुकदमे में फंसाए जाने व्यक्ति को सताना नहीं चाहिए। हम इस दिशा में प्रयास भी कर रहे हैं। जब भी डीएसपी या एसपी जांच को जाएं, तो सबके सामने यह बात रख देनी चाहिए कि अमुक दोषी नहीं है। जहां तक ट्रैफिक जाम की बात है, उससे वे भी सहमत हैं। कभी-कभी उनको भी सोचना पड़ता है कि दिन के समय उस एरिया में जाएं या न जाएं। समस्या समाधान के लिए हम सबको मिल-बैठकर रास्ता निकालना होगा। बैठक में पुलिस महानिरीक्षक जेएस गंगवार, उपपुलिस महानिरीक्षक एस. रविन्द्रन, ग्रामीण एसपी मनोज कुमार, चैम्बर अध्यक्ष ओपी साह, उपाध्यक्ष शशिमोहन, पूर्व अध्यक्ष जुगेश्वर पांडेय, पीके अग्रवाल, निर्वाचित महासचिव संजय खेमका आदि ने विचार व्यक्त किये।

Wednesday, December 21, 2011

Economic offence cell to book people causing loss to govt


PATNA: An Economic Offence Cell (EOC) under direct control of DGP Abhayanand, has been constituted at the state police headquarters to investigate cases of economic offence by the general public involved in misappropriation and misuse of government money and for confiscation of their property on conviction order passed by the court.

The EOC to be headed by IG, economic offence, Praveen Vashishth would comprise of a DIG (economic offence), SP (food) and SP (economic offence/cyber crime), 10 DSPs, 32 police inspectors, 72 SIs, two programmers, nine havildars and 10 other personnel. Their special training would be held at the CBI Training Centre at Ghaziabad.
The EOC will control the investigation of such economic offence cases by the district police and provide guidance to them to improve the quality of investigation of these cases. The food cell and cyber crime cell and cooperative cell of the police headquarters would be under this EOC, said Abhayanand.
The EOC would be located at the Biscomaun building here. It will apply the provisions of Criminal Law Amendment Act, 1944, which was enacted by the colonial British government to nab economic offenders among the general public, the DGP told TOI.
Abhayanand said that the cell is 'unique' in the sense that it will launch proceedings for confiscation of property of the public who would be found to have caused loss to the government by their involvement in misappropriation and misuse of funds.
The Special Court Act enacted by the government has brought into its net only the government servants involved in misappropriation of government money and on their conviction by the Special Court for confiscation of immovable property of the government official, he said.
He said that the provisions of this Act is being applied by the CBI to nab the general public people causing loss to government. The DGP said that the provision of this 1944 law was never applied at least in the state of Bihar.
The DGP said that he and some other IPS officials, who have been included in the cell, had while in the CBI learnt the use of Criminal Law Amendment Act, 1944, to investigate the cases of economic offence by the public. Now, use of this law for investigation and confiscation of property of the general public involved in causing huge economic loss to the government would be started.
With improvement in the economic situation in Bihar, there has been immense change in the nature of economic offences in the state, he said, adding that the total benefit of the welfare schemes were not reaching the target groups in the society. There is every possibility of misappropriation and misuse of government money during implementation of welfare schemes, he said.

Dolphin mascot for Police Games


PATNA: Bihar DGP Abhayanand along with four other DGs,Ashok Kumar Gupta, Manoje Nath, V Narayan and Shafi Alam on Friday released the mascot for the ensuing All India Police Games to be held from February 1 to 5, 2012, at Mithilesh Stadium here. The mascot for the games is 'dolphin', symbolizing its importance in the Gangetic region.
Speaking on the occasion, Abhayanand said that Bihar had been given a cluster of games, which include volleyball, handball, kabaddi and basketball, to be held during the ensuing 60th All India Police Games. "It is a proud moment for Bihar police to organize such a historic event," he said and added that it was after a lapse of 17 years that Bihar police had been given the responsibility of holding such an event. DG (home guards) Manoje Nath and other senior police officials expressed the hope that the meet would be a success.

Wednesday, December 14, 2011

DGP Abhayanand Initiative



हिंदुस्तान पटना अपने पहले पन्ने पर् लिखते हैं :- 
( पढ़ने के लिये - खबर पर् क्लिक करें ) 


Monday, December 5, 2011

डीजीपी अभयानंद ने सभी जिलों के आरक्षी अधीक्षकों को यह हिदायत भेजी है कि अपहरण से जुड़े सभी मामलों का हर हाल में स्पीडी ट्रायल कराया जाये।


पटना, जागरण ब्यूरो : डीजीपी अभयानंद ने सभी जिलों के आरक्षी अधीक्षकों को यह हिदायत भेजी है कि अपहरण से जुड़े सभी मामलों का हर हाल में स्पीडी ट्रायल कराया जाये। पुलिस अधिकारियों को इस बाबत जवाबदेह बनाया जाये। डीजीपी ने रविवार को कहा कि उन्होंने स्पीडी ट्रायल के मामलों की समीक्षा की है। इस क्रम में यह बात सामने आयी कि पिछले कुछ माह के दौरान छुट्टियों की वजह से ट्रायल स्पीडी स्वरूप में नहीं आ पाया। पुन: इस गति को तीव्र करने को ले सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया गया है। मुख्यालय के स्तर पर इसकी नियमित मानीटरिंग हो रही है।डीजीपी ने बताया कि बेतिया में दर्ज अपहरण मामलों में हर हाल में स्पीडी ट्रायल अपहरण के एक मामले में पुलिस ने स्पीडी ट्रायल करा पांच अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा दिलवायी। तीन नवंबर 2009 को बेतिया स्थित गुलाब मेमोरियल कालेज से संजय नाम के एक विद्यार्थी का अपहरण हो गया था। अज्ञात अपराधियों के खिलाफ इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी। मामला काफी पेचीदा था। अपहरण के छह दिन बाद फिरौती का फोन आया था। काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने अपहृत को बगहा से बरामद किया। इस मामले में आरंभ में जब ट्रायल शुरू हुआ तो रफ्तार काफी धीमी थी। इसके बाद पुलिस मुख्यालय के हस्तक्षेप के बाद ट्रायल में गति आयी और दो दिन पूर्व इस कांड में नामजद पांच अपहर्ताओं को आजीवन कारावास की सजा हुई है। जिन पांच अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा हुई है उनमें सुखारी यादव, संतोष साह, प्रदीप श्रीवास्तव, बंटी श्रीवास्तव व शोभा चौधरी शामिल हैं। 

एक आईपीएस का प्रयोग : बंदूक गलाओ, फरसा बनाओ



तीन महीने पहले, 31 अगस्त 2011 को 1977 बैच के बिहार कैडर के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अभयानंद ने सूबे के पुलिस महानिदेशक की कमान संभाली। तब उनके जेहन में यह सवाल उठा था कि विभिन्न थानों के मालखाने में जब्त अवैध अस्लहों का क्या किया जाए? प्रदेश में  824 पुलिस स्टेशन हैं। सन् 2000 से अगस्त 2011 तक पुलिस ने तकरीबन पौने दो लाख हथियार अपराधियों एवं उग्रवादियों से बरामद किए थे।
उनमें एके 47, कारबाइन, स्टेनगन, रायफल, बंदूक, माउजर, पिस्तौल, देसी कट्टा वगैरह थे। वैसे सूत्रों के मुताबिक अभी प्रांत में औसतन 10 आग्नेयास्त्र  प्रत्येक माह पुलिस के हाथ लगते हैं। हालांकि राजद राज में, खासकर मार्च 2000 से 4 मार्च, 2005 तक पांच सालों में हजारों-लाखों की संख्या में गैर-आईनी हथियार पुलिस ने बटोरे थे।

बहरहाल, प्रांतीय पुलिस प्रमुख की जिम्मेदारी मिलते ही अभयानंद ने पता लगाया कि मालखानों में कितने ऐसे हथियार हैं जिनके मामले अदालत द्वारा निबटाए जा चुके हैं। इस बाबत उन्हें खबर लगी कि 60 हजार अस्लहों के केस बाकायदा खत्म हो गए हैं। डीजीपी ने अदालत से इजाजत लेकर सामाजिक रूप से इस्तेमाल में आने वाले औजार बनाने का फरमान जारी कर डाला। मसलन, दरभंगा में सरिये, फावड़े, बेलचे, कुदाल आदि के निर्माण धड़ल्ले से जारी है। उन्हें पुलिस की मौजूदगी में लोहार पहले गलाते हैं। तब उपकरण का रूप प्रदान किया जाता है। ज्यादातर कृषि संबंधित उपकरण ही फिलवक्त तैयार करने का जोर पुलिस महानिदेशक का है। उम्मीद है कि बहुत ही कम दाम पर औजार काश्तकारों को उपलब्ध कराये जाएंगे। लोहारों को भी उचित राशि मुहैया कराई जाएगी। मुजफफरपुर में भी औजार ढालने का काम रफतार पकड़ चुका है।

सवाल उठता है कि अस्लहों को नेस्ताबूद कर उनसे उपकरण बनाना क्या न्यायसंगत है? अभयानंद शुक्रवार को बताते हैं- पुलिस मैन्युअल में स्पष्ट प्रावधान है कि डीजीपी उन शस्त्रों को नष्ट कर सकते हैं जिन्हें पुलिस ने जब्त कर रखा है और जिनकी उपयोगिता नहीं है। बेशक इसमें सावधसनी यही बरतनी होती है कि जिस कांड में हथियार पकड़े गए हैं, उस मुकदमे को कोर्ट ने निर्णय दे कर दिया हो। सीआरपीसी की धारा के तहत ही न्यायालय इस प्रकार के आदेश पारित करती है।

आर्थिक अपराध  समाज, राज्य एवं देश को दीमक की तरह चाट रहा है, यह टिप्पणी पुलिस महानिदेशक ने  की। लिहाजा, इस पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से अभयानंद ने आर्थिक अपराध इकाई बनाने का प्रस्ताव भी सरकार के पास भेजा है। उन्हें इसकी अधिसूचना शीघ्र ही जारी होने की उम्मीद है। बकौल डीजीपी इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक जिले में दो-तीन अफसरों को रखा जाएगा। वे दर्ज आर्थिक अपराधों का ही सिर्फ अनुसंधान करेंगे। इन अधिकारियों को ट्रेनिंग सीबीआइ देगी। गाजियाबाद में उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा। इस सिलसिले में सीबीआइ के निदेशक से गुजारिश की गई है। इसके अलावा यहां एक और आर्थिक अपराध यूनिट संगठित की गई है। इसका लक्ष्य होगा कालेधन पर रोक लगाना, जिस स्रोत से कालेधन का जन्म हो रहा है, उसे ही मटियामेट करना, ध्वस्त करना, जो राजस्व की हानि के लिए जिम्मेदार हैं, विकास कार्यो में घोटाले कर रहे हैं, कानून के दायरे में उनकी चल-अचल संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। भारत सरकार की एजेंसियों से भी अभयानंद ने अनुरोध किया है कि वे उनकी सहायता करें। वह खुलासा करते हैं कि आर्थिक अपराध के लिए पुलिस पहली मर्तबा तफतीश करेगी। उनके अनुसार आर्थिक अपराध का सीधा रिश्ता माओवादियों, नक्सलियों के बढ़ने से है। साथ ही नक्सलवादी इलाकों में तरक्की के कार्य होने भी आवश्यक हैं। नक्सली भी तो हमारी तरह ही इस मुल्क के नागरिक हैं।

खेल के क्षेत्र  में अभयानंद ने चक दे बिहार का जुमला उछाल रखा है। बीएमपी मैदान, पटना में उन्होंने बास्केटबॉल के अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का निर्माण शुरू करवा दिया है। एक कोर्ट की स्थापना पर करीब 35 लाख की रकम खर्च होगी। कबड्डी चूंकि अब मिट्टी में नहीं खेली जाती, बल्कि मैट पर उसकी उठापटक होती है, इसलिए अभयानंद की पहल पर विभाग मैट की खरीदारी करने वाला है। अभयानंद का ज्ड्रीम प्रोजेक्ट है बीएमपी ग्राउंड पटना को खेल गांव में तब्दील करना। चक दे बिहार का नारा अभयानंद ने 2008 में उस वक्त दिया था जब वे बीएमपी के एडीजी थे। इसे अमलीजामा पहनाने वास्ते उन्होंने डेढ़ सौ गरीब बच्चों का चयन किया। फिर उनमें से 75 लोगों को बास्केटबॉल, हैंडबॉल, एथलीट एवं हॉकी के खेल में कोच ने तीन सालों तक ट्रेंड करने में अपना तन-मन लगाया। नतीजतन, पूर्वी क्षेत्र एथलीट चैंपियनशिप प्रतियोगिता में चार लड़कों ने स्वर्ण तथा रजत पदक जीता। यह एथलीट प्रतियोगिता कोलकाता में हुई थी। जूनियर नेशनल बास्केटबॉल चैंपियन (19 वर्ष के अंदर के लड़के), स्कूल गेम फेडरेशन ऑफ इंडिया, नेशनल यूथ बास्केटबॉल चैंपियनशिप (17 साल तक के नौजवान) में नीतीश कुमार, रूपेश कुमार, सोनू कुमार, विकास गुप्ता चुने गए। आज की तारीख में सभी के सभी बिहार बास्केटबॉल टीम के अंग हैं। हैंडबॉल के लिए पांच लड़के-लड़कियां इधर चेन्नई के लिए रवाना हुए हैं। वहां राष्ट्रीय हैंडबॉल चैंपियनशिप होने जा रही है। हिंदुस्तान के कई प्रदेशों में 23 बच्चों ने जूनियर एवं सीनियर हॉकी चैंपियनशिप में अपना शानदार प्रदर्शन दिखाया है। सन् 2010 और 2011 में उन्हें मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय हॉकी चैंपियनशिप खेलने का भी मौका मिला है। जाहिर है चक दे बिहार ने देश में अपना परचम लहराया है। कुश्ती में अभयानंद ने कामेश्वर को बतौर कोच बहाल किया था। वही कामेश्वर कुश्ती कोच बनकर लंदन जा रहे हैं। डीजीपी के समक्ष बड़े-बड़े वेकों को लेकर छिड़ी गैंगवार एवं छोटी-सी घटना होने पर लोगों द्वारा कानून अपने हाथ में लेना अभी सबसे बड़ी चुनौती है। इस पर सख्ती से अंकुश नहीं लगाया गया तो सारे नुस्खे धरे के धरे रह जाएंगे।  

Economic offence cell to book people causing loss to govt


The Times of India Writes : 
PATNA: An Economic Offence Cell (EOC) under direct control of DGP Abhayanand, has been constituted at the state police headquarters to investigate cases of economic offence by the general public involved in misappropriation and misuse of government money and for confiscation of their property on conviction order passed by the court.
The EOC to be headed by IG, economic offence, Praveen Vashishth would comprise of a DIG (economic offence), SP (food) and SP (economic offence/cyber crime), 10 DSPs, 32 police inspectors, 72 SIs, two programmers, nine havildars and 10 other personnel. Their special training would be held at the CBI Training Centre at Ghaziabad.

The EOC will control the investigation of such economic offence cases by the district police and provide guidance to them to improve the quality of investigation of these cases. The food cell and cyber crime cell and cooperative cell of the police headquarters would be under this EOC, said Abhayanand.
The EOC would be located at the Biscomaun building here. It will apply the provisions of Criminal Law Amendment Act, 1944, which was enacted by the colonial British government to nab economic offenders among the general public, the DGP told TOI.
Abhayanand said that the cell is 'unique' in the sense that it will launch proceedings for confiscation of property of the public who would be found to have caused loss to the government by their involvement in misappropriation and misuse of funds.
The Special Court Act enacted by the government has brought into its net only the government servants involved in misappropriation of government money and on their conviction by the Special Court for confiscation of immovable property of the government official, he said.
He said that the provisions of this Act is being applied by the CBI to nab the general public people causing loss to government. The DGP said that the provision of this 1944 law was never applied at least in the state of Bihar.
The DGP said that he and some other IPS officials, who have been included in the cell, had while in the CBI learnt the use of Criminal Law Amendment Act, 1944, to investigate the cases of economic offence by the public. Now, use of this law for investigation and confiscation of property of the general public involved in causing huge economic loss to the government would be started.
With improvement in the economic situation in Bihar, there has been immense change in the nature of economic offences in the state, he said, adding that the total benefit of the welfare schemes were not reaching the target groups in the society. There is every possibility of misappropriation and misuse of government money during implementation of welfare schemes, he said.

Wednesday, November 23, 2011

पद से कहीं ऊंचा है कांस्टेबल रंजीता का काम


पद से कहीं ऊंचा है कांस्टेबल रंजीता का काम


Ranjita significantly higher post constable bihar football
बिहार के मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जब कांस्टेबल के पद पर रंजीता मिश्रा ने कार्यभार सम्भाला तो यह कोई नहीं जानता था कि वह इस क्षेत्र में एक बेमिसाल कहानी लिख डालेंगी।

भारतीय महिला फुटबॉल टीम की सदस्य रह चुकी रंजीता से प्रशिक्षण प्राप्त मुंगेर के चार बच्चे पिछले वर्ष राष्ट्रीय फुटबॉल अंडर-13 टीम में चयनित हो चुके हैं। इस साल भी एक बच्चे का चयन राष्ट्रीय फुटबॉल टीम अंडर-14 में हुआ है, जबकि चार बच्चों का चयन किशनगंज भारतीय प्राधिकरण प्रशिक्षण केंद्र (साई) के लिए किया गया है। उन्होंने पुलिस में अपनी ड्यूटी करते हुए इन बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दिया।

मुंगेर जिला पुलिस बल में रंजीता वर्ष 2007 में कांस्टेबल के तौर पर शामिल हुई थीं। उनके लिए यह जगह नई नहीं थी, क्योंकि पिता की नौकरी के दौरान वह कुछ समय तक उनके साथ यहां रह चुकी थीं। उन्होंने बताया, ‘जब मैं छोटी थी तो गंगा किनारे छोटे बच्‍चों को लोगों का सामान ढोते देखती थी। इसके बदले मिले पैसों से बच्चे नशा करते थे। कांस्टेबल की नौकरी मिलने के बाद मैंने इन बच्‍चों को इकट्ठा किया और इनका नामांकन स्कूल में कराया। कुछ दिन बाद उन्हें फुटबॉल का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।’

आज उनके पास 75 बच्‍चे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, जिनके अभिभावक रिक्शा चालक हैं या फिर सफाई और मजदूरी का काम करते हैं। उनके मुताबिक ‘इस काम के लिए मुझे न तो किसी औद्योगिक घराने से कोई मदद मिली और न ही सरकार से। अपने वेतन और समय-समय पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मदद से ही बच्चों को प्रशिक्षण दे रही हूं। उन्हें खेल सामग्री भी समय-समय पर पुलिस अधिकारी ही उपलब्‍ध कराते हैं।’

बिहार के भोजपुर की रहने वाली रंजीता मुंगेर के पोलो मैदान में जब बच्‍चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण देती हैं तो कई लोग उन्हें देखने के लिए जमा हो जाते हैं। वह बच्चों को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्‍दुल कलाम की उस पंक्ति का पाठ पढ़ा रही हैं, जिसमें उन्होंने ऊंचे सपने देखने की बात कही है, ताकि उन्हें पूरा करने की कोशिश की जा सके।

पिछले दिनों राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद ने अपने मुंगेर दौरे के दौरान रंजीता से मुलाकात की थी। इस काम के लिए उन्हें शाबाशी देते हुए पुलिस महानिदेशक ने रंजीता को पांच हजार रुपये का पुरस्कार देने की भी घोषणा की थी।

पद से कहीं ऊंचा है कांस्टेबल रंजीता का कार्य




बिहार के मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जब कांस्टेबल के पद पर रंजीता मिश्रा ने कार्यभार सम्भाला तो यह कोई नहीं जानता था कि वह इस क्षेत्र में एक बेमिसाल कहानी लिख डालेंगी।
भारतीय महिला फुटबॉल टीम की सदस्य रह चुकी रंजीता से प्रशिक्षण प्राप्त मुंगेर के चार बच्चों पिछले वर्ष राष्ट्रीय फुटबॉल अंडर-13 टीम में चयनित हो चुके हैं। इस साल भी एक बच्चों का चयन राष्ट्रीय फुटबॉल टीम अंडर-14 में हुआ है, जबकि चार बच्चों का चयन किशनगंज भारतीय प्राधिकरण प्रशिक्षण केंद्र (साई) के लिए किया गया है। उन्होंने पुलिस में अपनी ड्यूटी करते हुए इन बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दिया।
मुंगेर जिला पुलिस बल में रंजीता वर्ष 2007 में कांस्टेबल के तौर पर शामिल हुई थीं। उनके लिए यह जगह नई नहीं थी, क्योंकि पिता की नौकरी के दौरान वह कुछ समय तक उनके साथ यहां रह चुकी थीं। उन्होंने बताया कि जब मैं छोटी थी तो गंगा किनारे छोटे बच्चों को लोगों का सामान ढोते देखती थी। इसके बदले मिले पैसों से बच्चों नशा करते थे। कांस्टेबल की नौकरी मिलने के बाद मैंने इन बच्चों को इकट्ठा किया और इनका नामांकन स्कूल में कराया। कुछ दिन बाद उन्हें फुटबॉल का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।
आज उनके पास 75 बच्चों प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, जिनके अभिभावक रिक्शा चालक हैं या फिर सफाई और मजदूरी का काम करते हैं। उनके मुताबिक, इस काम के लिए मुझे न तो किसी औद्योगिक घराने से कोई मदद मिली और न ही सरकार से। अपने वेतन और समय-समय पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मदद से ही बच्चों को प्रशिक्षण दे रही हूं। उन्हें खेल सामग्री भी समय-समय पर पुलिस अधिकारी ही उपलब्ध कराते हैं।
बिहार के भोजपुर की रहने वाली रंजीता मुंगेर के पोलो मैदान में जब बच्चों को फुटबॉल का प्रशिक्षण देती हैं तो कई लोग उन्हें देखने के लिए जमा हो जाते हैं। वह बच्चों को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की उस पंक्ति का पाठ पढ़ा रही हैं, जिसमें उन्होंने ऊंचे सपने देखने की बात कही है, ताकि उन्हें पूरा करने की कोशिश की जा सके।
पिछले दिनों राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद ने अपने मुंगेर दौरे के दौरान रंजीता से मुलाकात की थी। इस काम के लिए उन्हें शाबाशी देते हुए पुलिस महानिदेशक ने रंजीता को पांच हजार रुपये का पुरस्कार देने की भी घोषणा की थी।

Friday, November 18, 2011

डीजीपी ने की कम्यूनिटी पुलिस की कार्यो की सराहना


रविवार को विश्वप्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला पहुंचे सूबे के डीजीपी अभयानंद ने अपराध अनुसंधान प्रदर्शनी के उपरांत एसपीओ कैम्प को देखा। यहां उन्हें कम्यूनिटी पुलिस के राजीव मुनमुन तथा निर्भय कुमार द्वारा मेले में एसपीओ के कार्यकलापों से अवगत कराया गया। इसके पूर्व शिविर में उनके प्रवेश करते ही एसपीओ के जवानों ने तालियां बजाकर उनका अभिनंदन तथा स्वागत किया।
पुलिस प्रमुख इन युवाओं से मिलकर खुश हुए। तत्पश्चात उन्होंने वहां रखे आगंतुक रजिस्टर पर लिखा कम्यूनिटी पुलिस अच्छा काम कर रही है और अच्छा करें। इस क्रम में उन्होंने मुनमुन के पीठ थपथपाये तथा वहां खड़े अन्य युवाओं का उत्साहव‌र्द्धन किया। इस अवसर पर अपर पुलिस महानिदेशक अमरीक सिंह निम्ब्रान, सारण के एसपी एके सत्यार्थी तथा डीएसपी वीरेन्द्र प्रसाद रजक सहित पुलिस के अनेक वरीय पदाधिकारी वहां मौजूद थे।

Thursday, November 17, 2011

In Bihar, Turning Guns into Farm Tools -


Courtsey : The Newyork Times 


In Bihar, Turning Guns into Farm Tools

From left, Sunil Thakur with his family, overseen by Muzaffarpur police chief Rajesh Kumar and executive magistrate Ramesh Kumar Ratnam, hammering country-made pistols into farm tools.Prashant RaviFrom left, Sunil Thakur with his family, overseen by Muzaffarpur police chief Rajesh Kumar and executive magistrate Ramesh Kumar Ratnam, hammering country-made pistols into farm tools.


Blacksmith Sunil Thakur had never felt as important in his life as he did on Nov. 4, when the district police chief, an executive magistrate and a posse of junior officials visited his makeshift roadside furnace.
They handed him six country-made pistols, known as kattas, and asked him to transform them into farm and gardening tools. As a crowd assembled, the blacksmith heated the guns, and then hammered the red-hot metal for nearly an hour, shaping them into a hoe, a clipper, a sickle and a shovel.
This transformation of guns into tools in Muzaffarpur, about 50 miles from Bihar’s capital of Patna, was the first in a state-wide police initiative aimed at reducing the number of guns in crime-ridden Bihar. According to the National Crime Records Bureau, 3,362 people were killed in violent crimes, defined as murder either by guns, knives or during robbery, in Bihar last year. This makes it India’s second-most crime-prone state after Uttar Pradesh, which tops the list with 4,456 cases.
The state’s new Director General of police, Abhayanand, who goes by just one name, is behind the initiative and a slew of larger reforms he hopes will re-establish the rule of law in Bihar.
Since he took the job in August, Mr. Abhayanand has also pushed for speedy trials in fast-track courts and appointed retired army personnel as special auxiliary police forces. His force is seizing property bought by members of the mafia using fake names. If details on the sale deed are found to be fraudulent, property will be claimed as a government asset after a six-month wait. Police say the move will help check corruption.
Country-made pistols or kattas, being melted into farm tools.
Prashant RaviCountry-made pistols or kattas, being melted into farm tools.
At present, more than 60,000 illegal firearms, stored in police stations across Bihar, are lined up to be melted and made into farming or agricultural tools. “The seized illegal weapons in store at police stations are of no use once the case is over. They stink like dead bodies,” Mr. Abhayanand said in an interview in the modest living room of his sprawling ancestral home.
Mr. Abhayanand said the Bihar police manual gave him the idea to transform these weapons. Bihar courts, under section 452 of the national criminal procedure code, 1973, can order the destruction of seized weapons once the trial is over.
“This provision made me think of converting thousands of seized weapons, lying in over 800 police stations in Bihar, into something constructive,” Mr. Abhayanand said with a smile. Bihar police seize about 60,000 weapons every year.
Before a gun can be melted down, there is plenty of paperwork. The district police have to acknowledge that the case a weapon is associated with is closed, then verify details of the arms seized from court records; and finally get a court order to destroy the weapon. The melting is carried out in front of an executive magistrate and a videographer, to produce documentary evidence.
By destroying seized firearms, police say they can ward off allegations of planted evidence. Police are regularly accused of falsely implicating people by planting weapons, kept in malkhanas, or storehouses, at police stations, which were not with the criminal at the time of arrest.
The destruction of these weapons will ensure that such allegations can no longer be made, Bihar police say.
Responses to the initiative have been mixed so far. Satish Kumar, who owns a vast tract of agricultural land in Punpun of Patna district, dismisses the move as “impractical and publicist.”
“It smacks of positive symbolism but doesn’t sound practically feasible. It will require a sustained effort from the overburdened and staff-starved Bihar police to turn the weapons into farming tools”, said Mr. Kumar, an engineer-turned-farmer.
But his neighbor, Sudhir Sharma, also a farmer, thinks otherwise. “We will be able to get our farming tools at cheaper rates and it will also help providing more work to local village toolmakers,” he said.
The Bihar-based writer is an assistant editor for The Pioneer. He has also reported for BBC online and worked for Outlook magazine for five years.

Sunday, November 6, 2011

Saturday, October 29, 2011

सिर्फ गया-जहानाबाद में हैं 400 अवैध क्रशर


Oct 28, 11:24 pm
पटना, जागरण ब्यूरो
अकेले गया और जहानाबाद जिले में 400 अवैध क्रशर रहे हैं। यह सूबे में आर्थिक अपराधियों की सक्रियता का नमूना है। पुलिस ने जब शुक्रवार को इन क्रशरों के खिलाफ अभियान शुरू किया, तो यह बात सामने आयी कि इस 'अपराध' की आड़ में मोटी राशि का घालमेल चल रहा था। इसके हिस्सेदारों में कई वैसे लोग भी थे, जिन पर रोकथाम की जिम्मेदारी थी।
डीजीपी अभयानंद ने बताया कि जिन एक दर्जन क्रशर को छापेमारी के बाद बंद किया गया है, उन पर सरकार को 40 से 50 लाख रुपये का चूना लगाने की बात है। यह आकलन अभी पूरा नहीं हुआ है। अनुसंधान थोड़ा समय ले सकता है, क्योंकि छोटी-छोटी बातों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। कई विभागों के अफसरों को लेकर पुलिस ने अपना यह अभियान चलाया था।
इस अभियान की परिधि में कई अन्य जिले भी आ सकते हैं। पहले चरण में पुलिस गया और जहानाबाद के स्टोन क्रशरों को खंगालना चाहती है। यह रिपोर्ट भी पक्की है कि लाइसेंस वाले क्रशर भी बड़े स्तर पर नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। आज कुल 11 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी हुई है।
डीजीपी ने बताया कि क्रशर बंद होने के बाद वहां काम कर रहे मजदूरों के सामने जीविका की समस्या उत्पन्न न हो, इसका ख्याल रखा जा रहा है। छापामारी में गया जिले के डीडीसी को भी रखा गया था। क्रशर में काम करने वाले मजदूरों को मौके पर ही मनरेगा के जाब कार्ड दिये गये हैं।

Wednesday, October 26, 2011

आर्थिक अपराध से जुड़े मामलों को दर्ज करने के लिए भी अलग से थाना

दैनिक जागरण , पटना संस्करण लिखते हैं :-


पटना, जागरण ब्यूरो : सीबीआइ और निगरानी विभाग के थानों की तरह आर्थिक अपराध से जुड़े मामलों को दर्ज करने के लिए भी अलग से थाना होगा। पुलिस महानिदेशक अभयानंद के अनुसार इस आशय का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है। गृह विभाग ही थाना अधिसूचित करने के संबंध में आदेश जारी करेगा। इधर, पुलिस मुख्यालय का आर्थिक अपराध पर फोकस बढ़ा है। मुख्यालय, अपराध अनुसंधान विभाग के अधीन गठित आर्थिक अपराध कोषांग को और सशक्त करना चाहता है। बदलते परिवेश, आर्थिक अपराध की जटिलताएं और बढ़ते साइबर क्राइम को देखते हुए पुलिस अनुसंधान में लोगों को और दक्ष बनाया जा सके, इसके लिए सीबीआइ के गाजियाबाद स्थित प्रशिक्षण केन्द्र में ट्रेनिंग दिलाने की योजना है। दरोगा से लेकर डीएसपी स्तर के अधिकारियों को चरणबद्ध तरीके से ट्रेनिंग दिलायी जायेगी।

Sunday, October 23, 2011

Bihar police bust Kisan Credit Card racket


Patna, Oct 22 (PTI) Bihar Police today claimed to have busted a racket in irregular and clandestine withdrawal of Rs five crore through Kisan Credit Card (KCC) following the arrest of two persons in Khagaria district. Director General of Police Abhaya Nand said the money was withdrawn form Bank of India and Allahabad Bank using 800 KCCs. The racket was busted by the economic offences department of Bihar Police. Police had arrested the two men earlier from their houses at Chichrua village in the district. They later confessed to have been involved in irregular and clandestine withdrawal of money from banks using KCCs, he said.

पुलिस ने बिहटा में तीस कट्ठे के बड़े प्लाट को अपने कब्जे में ले लिया है।


पटना, जागरण ब्यूरो : स्वामित्वविहीन (अनक्लेम्ड) जमीन और फ्लैट को पुलिस ने अपने कब्जे में लेने का अभियान आरंभ किया है। पुलिस ने बिहटा में तीस कट्ठे के बड़े प्लाट को अपने कब्जे में ले लिया है। पुलिस उन फ्लैटों को भी जब्त करेगी जो स्वामित्वविहीन है। आर्थिक अपराध पर लगाम कसने को केंद्र में रख बड़ा अभियान शुरू होने वाला है। डीजीपी अभयानंद ने शनिवार को बताया कि इस तरह की बातें अक्सर चर्चा में रहती है कि फर्जी नाम से बड़े स्तर पर रियल एस्टेट में निवेश किया जा रहा है। पुलिस इस तरह के आर्थिक अपराध पर नजर गड़ाये हुए है। हाल ही में पुलिस को यह सूचना मिली थी कि बिहटा में तीस कट्ठा का एक प्लाट स्वामित्वविहीन है। पुलिस ने अपने अनुसंधान को आगे बढ़ाया तो यह बात सामने आयी कि प्लाट की रजिस्ट्री हाल ही में हुई है। उस व्यक्ति की तलाश की गयी जिसने जमीन की रजिस्ट्री कराई है तो पता चला कि वह आसपास नहीं रहता है। जिस व्यक्ति के पते पर रजिस्ट्री की गयी थी उसका भी पता नहीं चला। इसके बाद पुलिस ने उक्त प्लाट को अनक्लेम्ड मानते हुए कब्जे में ले लिया। डीजीपी ने बताया एक्ट में पुलिस को इस तरह के अधिकार हैं कि स्वामित्वविहीन संपत्ति को वह जब्त कर सकती है। अपने सूत्रों से पुलिस इस तरह की संपत्ति का पता लगा रही है। पुलिस ने जिला प्रशासन को कब्जे में ली गयी जमीन का पूरा ब्योरा उपलब्ध करा दिया है। डीएम के स्तर से इस मामले में नोटिस दी गयी है कि जिसकी यह जमीन है वह इसका वैधानिक ब्योरा जिलाधिकारी कार्यालय को उपलब्ध कराये। अगर दावा सही रहा तो जमीन मुक्त कर दी जायेगी। छह महीने तक अगर दावा नहीं किया गया संपत्ति सरकारी संपत्ति में शामिल कर ली जायेगी। 

DGP Abhayanand Initiative . 

Thursday, October 20, 2011

लुहारों की भट्ठियों में गलेंगे मालखानों में रखे हथियार



पटना। बिहार में पुलिस थानों के मालखानों में रखे हथियार अब लुहारों की भट्ठियों में गलाए जाएंगे। कल तक जो हथियार किसी की जान लेने के काम आते थे उन्हें गलाकर जन उपयोगी सामान बना दिया जाएगा। बिहार पुलिस इस अनोखी पहल की शुरुआत कर चुकी है।

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को बताया कि अदालती प्रक्रियाओं को पूरा करते हुए दरभंगा में न केवल अपराधियों से जब्‍त हथियारों को नष्ट करने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई है बल्कि भविष्य में अन्य स्थानों पर भी ऐसा करने की योजना बनाई गई है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में उन हथियारों को नष्ट करने की कार्रवाई की जा रही है जिनसे सम्बंधित मामलों की सुनवाई प्रक्रिया न्यायालय में पूरी हो चकी है।राज्य के पुलिस महानिदेशक अभयानंद ने आईएएनएस को बताया कि हथियार किसी भी स्थिति में उचित नहीं है, वे नुकसानदेह ही होंगे। वह कहते हैं कि न्यायालय के आदेश के बाद हथियारों को लुहारों की भट्ठियों में गला कर कड़ाही, तवा सहित कई जन उपयोगी सामान बनाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जल्द ही बिहार पुलिस अपराधियों से जब्‍त हथियारों का रिकार्ड भी नष्ट करने के लिए उच्‍च न्यायालय से इजाजत मांगेगी।उन्होंने कहा कि थाने में रखे जाने वाले हथियारों के गलत उपयोग की भी आशंका बनी रहती है। वह बताते हैं कि अवैध हथियारों की बरामदगी के बाद मामले की सुनवाई के दौरान बतौर साक्ष्य इन हथियारों को न्यायालय में प्रस्तुत करना पड़ता है। इसके बाद इन्हें थानों के मालखानों में रख दिया जाता है। इस कारण जब तक सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक उसे नष्ट नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि दरभंगा में न्यायालय के आदेश के बाद मंगलवार को क्षेत्रीय पुलिस महानिरीक्षक की देखरेख में हथियारों को गलाने का कार्य किया गया। इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी कराई गई जिसे साक्ष्य के रूप में न्यायालय को दिखाया जा सकेगा। एक अन्य पुलिस अधिकारी के अनुसार वर्तमान समय में ऐसे हथियार नष्ट किए जा रहे हैं जिनसे सम्बंधित सुनवाई पूरी हो गई है परंतु जल्द ही न्यायालय से ऐसे हथियारों को भी नष्ट करने की इजाजत मांगी जाएगी जिनसे सम्बंधित मामलों की सुनवाई अभी न्यायालय में चल रही है। वह कहते हैं कि इसके लिए जब्‍त हथियारों का रिकॉर्ड रखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि राज्य के करीब सभी थानों में बड़ी मात्रा में हथियार जमा हैं जिनमें कई हथियार उचित देखरेख के अभाव में बर्बाद हो चुके हैं या बेकार हो गए हैं।


DGP Abhayanand Initiative 

DGP Abhayanand says Corruption May Become Economic Offence in Bihar


In a bid to curb corruption, Bihar police has proposed to make the scourge an economic offence and strengthen the agencies dealing with such crimes.

DGP Abhayanand told reporters that though the vigilance bureau has been dealing with corruption cases, it was felt that the police department could deal with such cases on its own.

Police would bolster its economic offence wing to check the menace, he said.

Abhayanand, who participated in a meeting of civil and police officials presided by Chief Minister Nitish Kumar, said ensuring peaceful and crime-free law and order situation were his top priorities.

Principal Secretary (Cabinet Coordination and Secretariat) Ravikant told reporters that the chief minister directed that peaceful law and order situation be maintained with zero tolerance policy towards communal and social strifes.

Wednesday, October 19, 2011

Ranjita's achievements caught the attention of Bihar's DGP Abhayanand



An enterprising woman constable of Bihar Police has been luring extremely poor children, including slum-dwellers and street children, to soccer to give them new lives.
Ranjita Singh, 27, currently posted with the training cell of Munger district police, has helped six children she trained to represent Bihar in the under-13 national championships and three others to make it to Sports Authority of India (SAI) hostel at Kishanganj, Bihar.
"I have been coaching football to 65 youngsters, including one girl, from extremely poor families to help them represent the state and the country in various tournaments," Ranjita said.
"Four of the six players who represented Bihar are the sons of sweepers with the Homeguards or the Railways while the two others are the sons of a daily-wage labourer and a milk vendor," she said.
Ranjita, from Bhojpur's Dhandiha village, said it had become her mission to harness the sporting talent of these children roaming the streets of Munger town.
"I saw about a dozen young boys loitering around aimlessly in the streets. Most were addicted either to drugs or gutkha. I casually invited them to play soccer with me at a local playground one morning… I started practising soccer with them every day and discovered that some of them were very gifted players," Ranjita said.
When the boys started attending her morning practice sessions regularly, she dropped a bombshell.
"I told them that I would not practice with them anymore because of their addictions and other bad habits," she said.
This brought about a sea change in their behaviour and they promised to give up all their bad habits to play football with her. Ranjita, with the help of her colleague Sushma and a physical training instructor Chandan, got them admitted to different schools and even got their tuition fee waived.
"We have a big ground in Munger but we did not have other infrastructure such as footballs, jerseys and boots for the players. This created hurdles in sending our players for an inter-district selection camp being held at Hajipur last year," she said.
Fortunately, the then SP M. Sunil Nayak heard about her mission and donated the players' uniforms, balls and boots to help them.
"This enabled our boys to go there and six of them qualified for Bihar's team that played in the national championships," Ranjita explained.
Ranjita's achievements caught the attention of Bihar's DGP Abhayanand who announced a cash award of Rs 5,000 for her and also asked the SP to relieve her from her regular duty in the police department.
"I am so obliged that the DGP has reposed trust in a constable such as me. I will try my level best to live up to his expectations," she said.
Ranjita too had made it to the Indian women's soccer team after excelling at the national championships in which she represented Bihar.
"I went to Singapore to play in an international championship organised by the Football Association of Singapore (FAS) in 2003," she claimed.
"I initially excelled in track and field events and even lived at the SAI hostel in Ranchi but I was later drawn towards soccer. I started by playing with the boys and was selected for the Bihar and the India teams. The state government twice felicitated me for my performances," she added.
She suffered from a nagging knee problem which affected her career as a player.
Her father was a mechanic in the state public health and engineering department and her family of seven faced financial problems following his retirement.
"I wanted to join the National Institute of Sports but desperately needed a job. So I finally became a constable in 2008," she said.


Friday, October 14, 2011

रंजीता के जज्बे को डीजीपी का सैल्यूट


रंजीता के जज्बे को डीजीपी का सैल्यूट पटना, जागरण ब्यूरो : फुटबाल के प्रति लगन की बदौलत मुंगेर जिला पुलिस बल में सिपाही पद पर कार्यरत रंजीता को आखिरकार डीजीपी का सैल्यूट मिल ही गया। चार साल पहले वह पुलिस में भर्ती हुई थी। डीजीपी अभयानंद के मुताबिक बुधवार को वे मुंगेर में थे। रंजीता उनसे मिलने आयी और कहा-मैंने जिन बच्चों को फुटबाल की ट्रेनिंग दी है उनसे मिल लीजिये सर। यह सुन उत्सुकता हुई। मैंने देखा कमाल की ट्रेनिंग है उन आठ से चौदह वर्ष के बच्चों की। उन सभी की रंजीता दीदी का करिश्मा यह है कि उनमें से चार बच्चे भारतीय फुटबाल की अंडर 14 टीम में शामिल कर लिए गये हैं। बिना किसी बड़े हाइप के मुंगेर में यह काम हो रहा है। डीजीपी ने विभाग के स्तर से रंजीता के लिए पांच हजार रुपये के पुरस्कार की अनुशंसा की है। रंजीता, पुलिस में आने के पहले भारतीय महिला फुटबाल टीम की सदस्य रही हैं। पुलिस में आने के बाद भी उसने अपने शौक को जारी रखा। आसपास के गरीब बच्चों को फुटबाल से जोड़ा और सुबह-शाम उन्हें ट्रेनिंग देने लगी। आज वह बीस-बाइस बच्चों को ट्रेनिंग देती है। रंजीता ने अभी शादी नहीं की है। वह अपने वेतन की बड़ी राशि इन बच्चों के प्रशिक्षण पर खर्च कर रही है।

DGP Abhayanand Initiative : Speedy Trials & Arms Act


आ‌र्म्स एक्ट के मामलों में अपील की नकेल पटना, जागरण ब्यूरो : पुलिस मुख्यालय ने आ‌र्म्स एक्ट के छुट्टा घूम रहे सजायाफ्ता अपराधियों को अपील की नकेल से कसने की योजना सभी व्यवहार न्यायालयों तक पहुंचा दी है। डीजीपी अभयानंद ने बताया कि सभी व्यवहार न्यायालयों को लिखित रूप से यह अनुरोध किया गया है कि कोर्ट ने अपील की सुनवाई की जो तारीख तय की है उसपर हर हाल में अपील को सुन लिया जाये। यह स्पीड अपील की योजना का एक हिस्सा है और फिलहाल इसे आ‌र्म्स एक्ट तक रखा गया है। पुलिस मुख्यालय ने हाल ही में जिलों से यह आंकड़ा मंगवाया था कि आ‌र्म्स एक्ट के तहत सजायाफ्ता हुए कितने लोग अपील में गये हैं। संख्या काफी है। इसके बाद पुलिस ने स्पीड अपील की योजना तैयार की। डीजीपी ने कहा कि पूर्व में अपील की जो तारीखें निचली अदालत ने तय कर रखी है उसमें परिवर्तन तो संभव नहीं है। इस बात को ध्यान रख न्यायालयों से यह अनुरोध किया गया है अपील सुनने की जो तारीख तय है उसपर हर हाल में अपील को सुन लिया जाये। अपील पर फैसले के तुरंत बाद संबंधित सजायाफ्ता को गिरफ्त में लेने या फिर अगली कार्रवाई के निर्णय में पुलिस को सहूलियत होगी। अभी सिर्फ आ‌र्म्स एक्ट से जुड़े मामलों में पुलिस की ओर से न्यायालयों में आवेदन दिया गया है। दूसरे मामलों पर भी अपील के बारे में न्यायालय को आवेदन दिया जा सकता है। आंकड़े नहीं ब्योरा मंगा रहा पुलिस मुख्यालय पटना : स्पीडी ट्रायल पर पुलिस मुख्यालय ने फिर से अपने को केंद्रित किया है। हाल के दिनों तक जिलों से पुलिस मुख्यालय के पास स्पीडी ट्रायल के जो आंकड़े आ रहे हैं उसमें सिर्फ संख्या का जिक्र रहता है। यह बताया जाता है कि कितने लोगों को दस वर्ष तक की सजा हुई। कितने को आजीवन कारावास या फिर कोई और सजा। पुलिस मुख्यालय ने अब यह व्यवस्था की है कि जिलों से संख्या की बजाए उन मामलों का पूरा जिक्र भेजा जाये जिसमें सजा हुई है। डीजीपी का कहना है कि इसका मकसद उन मामलों की मानीटरिंग करना है जो चर्चित रहे हैं।

Tuesday, October 11, 2011

DGP Abhayanand Initiative


DGP Abhayanand Initiative 

डीएसपी के सीधे नियंत्रण में पुलिस और गाड़ी


DGP Abhayanand Initiative :- 

डीएसपी के सीधे नियंत्रण में पुलिस और गाड़ी पटना, जागरण ब्यूरो :
 पुलिस मुख्यालय ने जिला पुलिस बल को कंपनी में तब्दील किए जाने का आदेश सोमवार को जारी कर दिया। जिस जिले में छह कंपनी होगी, वहां एक बटालियन पुलिस बल की उपलब्धता हो जायेगी। जिलों के एसपी को इसका पूरा हिसाब-किताब लगाना है कि किस एसडीपीओ को कितनी कंपनी उपलब्ध कराई जाए। अब डीएसपी के पास अपनी फोर्स और गाड़ी होगी। पुलिस मुख्यालय ने हाल ही में सैप को जिलों के पुलिस अधीक्षकों के नियंत्रण से मुक्त किया था। आला अधिकारियों का कहना है कि जिलों में इतनी संख्या में पुलिस बल हैं कि उनका सही आंकड़ा जिला पुलिस मुख्यालय तक में उपलब्ध नहीं है। इसके बाद भी डीएसपी को जब पुलिस बल की जरूरत पड़ती है तो वह एसपी से गुहार लगाने पहुंच जाते हैं। नयी व्यवस्था के तहत एसपी अपने अधीन कार्यरत सभी एसडीपीओ यानी डीएसपी को जरूरत के हिसाब से पुलिस बल की कंपनी उपलब्ध करा देंगे। पुलिस बल उसके अधीन काम करेंगे। डीएसपी को पुलिस बल के लिए कहीं नहीं जाना होगा। पुलिस मुख्यालय ने इनके लिए वाहनों की भी अलग से व्यवस्था कर दी गयी है। सूबेदार व जमादार स्तर के पुलिस अधिकारी कंपनी कमांडर के रूप में काम करेंगे। उन्हें इसका हिसाब रखना है कि उनकी कंपनी के जवान की तैनाती कहां है। अभी यह पता नहीं चल पाता है कि जिलों के पुलिस बल कहां-कहां बिखरे पड़े हैं। लाठी पार्टी और राइफलधारी पुलिस बलों का अलग-अलग हिसाब रखा जायेगा।