स्थान-पटना का रहमानिया सुपर-30। तारीख-12 अप्रैल। समय-रात 8 बजे का। आई.आई.टी./जे.ई.ई. प्रतियोगिता परीक्षा देकर वापस लौटे सुपर-30 के छात्र आपस में चर्चा कर रहे थे। तभी विक्रम राज को किसी ने फोन किया। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव एक साथ आ रहे थे। किसी अभिन्न का आमंत्रण है शायद। पर वह स्वीकारने की स्थिति में नहीं है। लंबे अर्से के लगाव और जुड़ाव को नकार रहा है। लगभग एक ही शब्द दुहरा रहा है- न बाउजी न हम न अइबो, हम पढ़वो। उसके जीवन के समक्ष एक निर्दिष्ट लक्ष्य है। जाहिर है, इसी लिए वह स्नेह, संबंध, अपनापन-सारे संवेदनात्मक भावो को अपने आप से दूर रखने का निर्णय ले चुका है। विक्रम गया के मगध सुपर-30 का एक छात्र है। फोन करने वाले और कोई नहीं उसके पिता हैं। बुला रहे थे। बारिश शुरू हो जायेगी। कुछ ही दिनों में, छप्पर छाना है। बांस काटने के लिए घर आ जाओ। पिता वैसे पेशे से अधिवक्ता हैं। प्रैक्टिस न के बराबर है। ऐसे में पिता की चिंता वाजिब है। पर विक्रम का नकारना भी वाजिब है। उसे जीवन में ऊपर उठने का एक सुनहरा अवसर मिला है। वह उसे खोना नहीं चाहता। विक्रम दलित समाज से आता है। ऊंचे सपने देखने का हकदार नहीं था। पर मगध सुपर-30 और आईपीएस अधिकारी अभयानंद ने उसे इस काबिल समझा है, चुना है और एक मंच दिया है संघर्ष करने और अपनी क्षमता दिखाने का, तो वह बीच रास्ते में किसी की पुकार क्यों सुने? विक्रम के साथ एक और दुर्भाग्य साथ है। उसका इलाका यानी ग्राम चौंगाई, प्रखंड बांकेबाजार नक्सल प्रभावित इलाका है। पुलिस दिन में भी वहां जाने से कतराती है। क्षेत्र में सुविधाएं नगण्य है। इलाके में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) का वर्चस्व है। या यूं कहें कि क्षेत्र नक्सलियों का कथित मुक्त क्षेत्र है। जहां बच्चे शिक्षा के नाम पर लाल सलाम व नक्सली साहित्य से जुड़ाव रखते हैं। ऐसे में इस नियति को ललकारने की ताकत सुपर-30 की चयन परीक्षा ने दी। विक्रम को मगध सुपर-30 के आवासीय रख-रखाव ने हौसला दिया। जब वह वहां आया था तो साथ में दवाओं की पोटली थी। श्री अभयानंद की धर्मपत्नी डा. नूतन के प्रयास से विक्रम स्वस्थ हो गया। पढ़ने लगा। आवासीय परिसर में विक्रम जब आया था तो अपने क्षेत्र में बचपन से लेकर युवा होने तक सामंतवाद की कई कहानियां सुन रखा था। यहां तो अमित सिंह, मृत्युंजय मिश्र और आकांक्षा जैसे छात्र-छात्राओं के साथ एक पंगत तो कई बार एक थाली में बैठकर भोजन करने का सुयोग पाया, तो आंखें दूर तक देखने लगी। सपनों का संसार पुतलियों पर बैठ गया। श्री अभयानंद के हाथों का स्पर्श कंधे पर मिला तो लगा, जीवन में प्रवाह आ गया है। बीमारी पीछे छूट गयी। लक्ष्य बस एक ही रह गया-आई.आई.टी./जे.ई.ई. से जुड़ी शैक्षणिक तैयारी। विक्रम राज अपने लक्ष्य में सफल हो चुका है। विक्रम आई.आई.टी. के एक्सटेंटेड मेरिट लिस्ट में शामिल है। विक्रम अपने इलाके यानि नक्सलियों के कथित मुक्त क्षेत्र के असंख्य दलित-महादलित पर मेधावी छात्रों के लिए आने वाले समय में एक आदर्श चरित्र बनेगा। यह तय है। तब एक और आदर्श समाज में अपना आकार गढ़ेगा। सामाजिक समरसता पैदा करने का, नक्सली गतिविधियों को रोकने का इससे कारगर उपाय और कुछ भी नहीं है।
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