याद रहेगा अमित से रोटियां छिपा कर खाना पटना : चिन्तामणि प्रसाद गया के पटवा टोली में रहता है। उसके पिता दीनदयाल प्रसाद बुनकर हैं। काम में उनकी पत्नी भी मदद करती है। छह बच्चों के अपने कुनबे को चलाने में दीनदयाल को जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और चिन्तामणि इस बार आईआईटी की परीक्षा में सफल हो गया। पटवा टोली के इस होनहार छात्र ने पहली बार अपने मुहल्ले पटवा टोली के एमडीएम स्कूल में दाखिला लिया। इसके बाद उसका नामांकन ब्राइट हाउस स्कूल में करा दिया गया। इस स्कूल में उसकी फीस माफ हो गई। जहानाबाद से उसने प्राइवेट छात्र के रूप में मैट्रिक की परीक्षा 87.6 फीसदी अंक से पास की। बाद में धनबाद से प्राइवेट छात्र के रूप में 12 वीं की परीक्षा दी और 89 फीसदी अंक प्राप्त किया। छह भाई बहनों में सबसे छोटा चिन्तामणि मगध सुपर-30 का किशोर कुमार था। चिन्ता को मगध सुपर -30 में अपने दोस्तों के साथ बिताये गये पल हमेशा याद रहेंगे। खासकर अमित से अपनी रोटियां बचाने के लिए लगाने वाली दौड़ को। अधिकारियों से मिलकर होता था गर्व : हमारे गांव जलालपुर में पुलिस का खौफ है। लोग आज भी पुलिस वालों को देखकर सहम जाते हैं। नक्सल प्रभावित इस गांव का विक्रम राज जब पहली बार अभयानंद व उनके अन्य आईपीएस दोस्तों से मिला तो काफी गौरवान्वित महसूस किया। मैट्रिक तक की पढ़ाई जलालपुर में ही की। उसके बाद गया कालेज में नामांकन कराया। चार भाई बहनों में सिर्फ उसकी दीदी ही बड़ी है। बाकी सब उससे छोटे हैं। सौभाग्य रहा कि सुपर-30 में चयनित हो गया। यहां अभयानंद सर व उनके मित्रों ने काफी मनोबल बढ़ाया। अब तो मेरे पिता को मुझपर काफी गर्व है। वे अदालत में अपने मित्रों से अक्सर मेरे संबंध में ही बातें करते हैं। 16 भटूरे खाकर बनाया रिकार्ड : निजी स्कूल के शिक्षक का पुत्र अमित कद-काठी में काफी तगड़ा है। गया जिले के लखीबाग का रहने वाले अमित के साथ उसके पड़ोस का सुमित आनंद भी मगध सुपर-30 में ही पढ़ता था। बताता है कि पंकज सर मुझे काफी मानते हैं। एक बार उनकी पत्नी हमारे यहां आई। उन्होंने सभी बच्चों के लिए छोला भटूरा बनाया। मैंने व सुमित ने खाना शुरु किया। सबसे पहले खाने बैठे थे और सब के खाकर उठ जाने के बाद तक लगातार खाते ही रहे। इस दौरान मैंने 16 भटूरे खाये। यह भी सुपर-30 के लिए एक रिकार्ड है। रोआं-रोआं ऋणी है समाज का : पथ निर्माण विभाग के दफ्तरी कमला प्रसाद सिंह का पुत्र कुणाल सुपर-30 के सफल छात्रों में एक है। छपरा का मूल निवासी उसका परिवार पिछले 25 साल से गया में ही रह रहा है। कुणाल बताता है कि उसकी दीदी भी गया कालेज की थर्ड टापर थी। इस वर्ष सीबीएसई की 12 वीं में 89.4 प्रतिशत अंक हासिल करने वाले कुणाल को सुपर-30 के नाम व अपने सीनियर्स से शुरु में थोड़ा डर लगा। लेकिन वहां के माहौल ने उसके डर को समाप्त कर दिया। कुणाल मानता है कि माता-पिता के बाद समाज ने उसके लिए बहुत किया। उसका रोआं-रोआं समाज का ऋणी है। कुणाल चाहता है कि जिस तरह अभयानंद सर ने समाज की मदद से मेरे जैसे लड़कों को जीवन में सफल बनाया। वैसा ही कुछ करने का मौका ईश्र्वर उसे भी दें। मेहनत करने में भी मजा आया : अनिल प्रसाद अपने घर में ही छोटी सी दुकान चलाते हैं। तीन बेटियां व एक बेटा है। बेटा सबसे छोटा है। नाम है अमित। जिसे मगध सुपर-30 में अमित-1 नाम दिया गया। पिछले साल 12वीं की परीक्षा पास की। आईआईटी की तैयारी में जुट गया। भौतिकी उसके मामा पढ़ाते थे, जबकि बाकी दोनों विषयों के लिए वह ट्यूशन पढ़ता। पिछली बार वह किसी भी इंजीनियरिंग की परीक्षा में सफल नहीं हुआ। इसी बीच सुपर-30 में उसका चयन हो गया। यहां माहौल ऐसा था कि मजा आता। कोर्स पूरा करने के लिए शिक्षकों ने भी जी-तोड़ मेहनत की। सो जाने के बाद अपने कोचिंग से शिक्षक लौटते और बच्चों को जगा कर रात दो बजे तक पढ़ाते। कोर्स पूरा करने के लिए एक दिन में छह घंटों तक क्लास लिया। इसके बाद टास्क देते। उसकी जांच करते। दोस्तों में भी रहती गहरी प्रतिस्पर्धा : भागलपुर में हिन्दी के शिक्षक रंजीत के पुत्र गौरव ने सुपर-30 की मदद से इस बार आईआईटी में प्रवेश हासिल किया है। बताता है कि मगध सुपर-30 के सभी बच्चों में अच्छी दोस्ती थी। लेकिन उनके बीच गहरी प्रतिस्पर्धा भी थी। गौरव बताता है कि पढ़ते तो सभी हैं, लेकिन आईआईटी में सफल होने के लिए आवश्यक है कि पढ़ाई की पूरी योजना तैयार की जाये। अभयानंद सर यही सिखाते। हमें बताते कि परीक्षा के 3 घंटों का हम किस तरह बेहतर ढंग से सदुपयोग करें। शिक्षकों के पढ़ाने के बाद भी वह कम से कम 10 घंटो स्वाध्याय में बिताता था। सब एक ही तरह सोचते थे : अविनाश के पिता जी भवनेश्र्वर शर्मा खेती करते हैं। जबकि उनकी मां प्रेम कुमारी सिंह गया मध्य विद्यालय की शिक्षिका हैं। उसका बड़ा भाई अभिषेक आईटी कंपनी में काम करता है। मगध सुपर-30 के विषय में बताता है कि वहां सभी बच्चों की सोच एक थी। कुणाल उसका सबसे अच्छा मित्र था, लेकिन चिन्तामणि व अमित बहुत अच्छा गाते हैं। अविनाश बताता है कि जब पढ़ते-पढ़ते थक जाते तो घर बंद कर इन दोनों से गाना सुनते।
Ex Director General of Police- Bihar. A super Cop who designed super achievers of SUPER 30 , Special Auxiliary Police , Speedy Trials , BMP Hospital , Series of Super 30 in various part of India and many more feathers in his cap ....
Wednesday, May 27, 2009
समाज के सहयोग से पूरा हो सकता है हर सपना : Abhayanand
पटना, हमारे प्रतिनिधि : हमारे समाज की सबसे बड़ी समस्या अशिक्षा और बेरोजगारी है। दोनों समस्याओं पर समाज संगठित रूप से काबू पा सकता है। जरूरत है लोगों को सामूहिक प्रयास करने की। समाज के संगठित प्रयास से ही हर सपना को संभव किया जा सकता है। ये बातें मंगलवार को राजधानी के श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में आईआईटी परीक्षा में सफल छात्रों के सम्मान में आयोजित समारोह में सुपर 30 के संस्थापक अभयानंद ने कही। श्री अभयानंद ने कहा कि वर्ष 2002 में गरीब बच्चों को आईआईटी की तैयारी के लिए एक कदम बढ़ाया गया था। प्रथम वर्ष में सुपर थर्टी के बच्चों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। इससे सुपर थर्टी के प्रयास को काफी प्रोत्साहन मिला। सुपर थर्टी ने वर्ष 2009 में मंजिल प्राप्त कर लिया और इसके बच्चे शत प्रतिशत सफल रहे। उन्होंने कहा कि सुपर थर्टी से प्रत्येक वर्ष मैने कुछ न कुछ सीखा। अनुभव के आधार पर ही इसका रिजल्ट प्रति वर्ष बेहतर होता गया। उन्होंने जोर दिया कि सुपर थर्टी को कोई कोचिंग न समझा जाये। इसका आधार गुरुकुल है, जहां बच्चे रहकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। यहां पढ़ाने वाले शिक्षकों को पैसा नहीं दिया जाता। शिक्षक अपना समय निकालकर सुपर थर्टी के छात्रों को पढ़ाते हैं। यहां के बच्चे सुबह पांच बजे जग जाते हैं, वहीं रात में बारह बजे सोते हैं। सुपर थर्टी बच्चों को कनसेप्ट बताया जाता है। सुपर थर्टी एक ब्राण्ड है, जिसका पिछले वर्ष भौगोलिक रूप से विस्तार किया गया था। वर्तमान में सुपर 30 मगध, सुपर 30 नालंदा, सुपर 30 त्रिवेणी, सुपर 30 रहमानी, सुपर 30 अंग के नाम से चलाया जा रहा है। इन संस्थानों से इस वर्ष राज्य के 54 छात्र लाभान्वित हुए हैं। श्री अभयानंद ने अवकाश प्राप्त शिक्षकों से आह्वान किया कि वे अपना थोड़ा समय नयी पीढ़ी के छात्रों को दें। उन्होंने कहा कि शीघ्र ही सुपर 30 के संचालन में हुए खर्च घोषित कर दिये जायेंगे। इस अवसर पर आईआईटी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने वाले छात्रों को सम्मानित किया गया। वहीं शिक्षकों को भी शाल भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर नवल कनोडिया, हजरत मौलाना वली रहमान, गीता, शोभा, नूतन आनंद, किशुन पासवान एवं योगेन्द्र राउत सहित कई लोगों ने अपना विचार व्यक्त किया।
हर बच्चा सक्षम तराशने की जरूरत : Abhayanand
पटना,
सूबे का हर छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में सफल हो सकता है। सिर्फ उन्हें थोड़ा तराशने की जरूरत है। बेहतर तकनीक, मजबूत इरादे व कड़ी मेहनत से सफलता कदम चूमती है। ऐसा मानना है सूबे के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अभयानंद का। उन्होंने बताया कि सुपर-30 में गरीब तबके के अधिकांश छात्रों का चयन किया जाता है। सारे सामान्य छात्र होते हैं जिन्हें आठ माह के कड़े प्रशिक्षण में तराशने का काम किया जाता है। बच्चों को कुछ ऐसी तकनीक बतायी जाती है जिससे वे कठिन से कठिन से सवालों का हल सफलतापूर्वक कर लेते हैं। श्री अभयानंद ने कहा कि गरीब परिवार के मेधावी बच्चों के लिये आईआईटी तो दूर सामान्य इंजीनियरिंग कालेजों में दाखिला लेने की बात सपने से कम नहीं होता। सुपर-30 के माध्यम से उनके सपनों को छेड़ने की कोशिश की जाती है। उन्हें आईआईटी की तैयारी के गुर सिखाये जाते हैं और अंत में वे सफल भी होते हैं। अपने घर पर सफल छात्रों को दिये गये भोज के दौरान उन्होंने कहा कि उनकी यह संस्था पूरी तौर पर समाज से जुड़ी हुई है। वे बच्चों का चयन करते हैं। समाज के चिकित्सक, इंजीनियर, व्यापारी उनके रहने-भोजन की व्यवस्था करते हैं और कालेजों के वरिष्ठ शिक्षक उन्हें मुफ्त में पढ़ाते हैं। इस तरह समाज के गरीब बच्चे समाज के ही द्वारा आईआईटी के लिये तैयार किये जाते हैं। उनकी कोशिश है कि सूबे के हर क्षेत्रों से प्रत्येक वर्ष पांच सौ से अधिक बच्चों का चयन आईआईटी में करायें। इसके लिये भागलपुर, नालंदा, गया, पटना में केन्द्र बनाये गये हैं जबकि मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सीतामढ़ी, बेगूसराय आदि शहरों में भी सुपर-30 के केन्द्र बनाने की योजना है। उनका मकसद ऐसे गरीब छात्रों को आईआईटी के लिये तैयार करना है जिन्हें दो जून की रोटी के लिये भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसे परिवार के बच्चे जब इंजीनियर बनेंगे तो समाज का कल्याण हो सकेगा।
साभार : दैनिक जागरण , पटना
आर्थिक दबावों को चीर मनवाया लोहा
पटना, जागरण प्रतिनिधि : ग्रामीण इलाके के मेधावी छात्रों ने आर्थिक दबावों को चीर एक बार फिर सभी को अपनी प्रतिभा का लोहा मानने पर मजबूर कर दिया है। ये वे छात्र हैं जिनकी हैसियत किसी प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान के दरवाजे तक जाने की नहीं थी। एडीजी अभयानंद की दिखायी रोशनी में इन्होंने अपने लिये इंजीनियरिंग के सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी का दरवाजा खोल लिया है। सफल छात्रों में से अधिकांश को साल भर पहले सुपर थर्टी का पता तक नहीं था। जानकारी मिलने पर इन्होंने सुपर थर्टी के माध्यम से अपनी प्रतिभा आजमानी चाही और इसमें इन्हें शत प्रतिशत सफलता हासिल हुयी। इस पूरे सिलसिले में रोचक बात यह है कि एडीजी अभयानंद से इसी साल जुड़े रहमानिया फाउंडेशन के सभी दस अल्पसंख्यक छात्रों ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा में अपना परचम लहराया है। बिहारशरीफ के मौलानाडीह के रहने वाले मोहम्मद के।आलम गांव में किराने की दुकान चलाते हैं। वे अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर खासे सतर्क और उनके दो बच्चे पहले से ही इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हैं। लेकिन अभी तक उनके गांव में किसी ने आईआईटी की परीक्षा में सफलता हासिल नहीं की थी। श्री आलम को अपने बेटे हसीब रजा पर फख्र है। उसने पूरे गांव का सपना पूरा कर दिया है। हसीब पांच भाई व तीन बहनों में वह सातवें स्थान पर है। दरभंगा के गरीब किसान परिवार के नकी इमाम ने कभी सपने भी आईआईटी में प्रवेश लेने की नहीं सोची थी। परंतु सुपर-30 के मार्गदर्शन में उसने यह मुकाम हासिल कर लिया है। गया में जूते की छोटी सी दुकान से परिवार की परवरिश करने वाले मो.रेयाजुद्दीन बेटे अकरम की सफलता से फूले नहीं समा रहे। सब्जीबाग के सादनान अनवर के पिता काफी पहले ही गुजर चुके थे। मां स्कूल में शिक्षिका हैं। किसी तरह उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाकर बड़ा किया था। उनके बेटे ने रहमानी सुपर-30 में दाखिला लिया और आज आईआईटी की परीक्षा में बेहतर स्थान लाकर सबको हैरत में डाल दिया। मोतिहारी के ढाका के रहने वाले अलीक अहमद ने भी आईआईटी में प्रवेश लेने वाले गांव के पहले छात्र का गौरव हासिल किया है। मोतिहारी से ही शाहबाज हैदर ने भी बाजी मारी है। विकलांग पिता की संतान साकिब मुस्तफा ने भी अपने पिता का नाम रोशन किया। रहमानी सुपर-30 के ही अलीशान मुस्तफा, मो.अवसार आलम एवं नजीम आलम ने भी आईआईटी परीक्षा में सफलता अर्जित की है। पिछले साल जुलाई में रहमानी इन्स्टीच्यूट की नींव रखने वाले मुंगेर खानकाह के पीर मौलाना वली रहमानी बच्चों की इस सफलता से खासे उत्सहित हैं। उन्होंने अपनी खुशी का इजहार करते हुए कहा कि इस सफलता में अभयानन्द जी के साथ-साथ तमाम शिक्षकों और रहमानी थर्टी से जुड़े तमाम लोगों का बड़ा योगदान है।
साभार : दैनिक जागरण , पटना
हाथ मिले तो बात बनी
पटना/गया, जागरण टीम : अगर समाज एकजुट हो तो क्या कुछ नहीं हो सकता। इसका जीता जागता प्रमाण है मगध सुपर-30। एक व्यक्ति की ऊंची व सच्ची सोच को समाज का सहयोग मिला, जिसने 14 विद्यार्थियों की जिन्दगी की दिशा ही बदल डाली। मगध सुपर-30 1977 बैच के आईपीएस अधिकारी अभयानंद का ब्रेन बेबी है। उन्होंने अपने इस विचार से इस संवाददाता को अवगत कराया। उन्होंने गया को अपनी प्रयोग भूमि के लिए चुना। पिछले साल 16 अगस्त को गया में मगध सुपर-30 की शुरूआत हुई। सेंट्रल बिहार चैंबर आफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष द्वय डा। कौशलेन्द्र प्रताप व डा. अनूप केडिया, समाजसेवी शिव राम डालमिया एवं लालजी प्रसाद मदद को आगे आये। शुरूआत में मगध के तत्कालीन डीआईजी प्रवीण वशिष्ठ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रवेश परीक्षा के लिए क्रेन मेमोरियल स्कूल के प्राचार्य फादर राज व मिर्जा गालिब कालेज के प्राचार्य डा. समदानी ने अपने विद्यालय परिसर को स्वेच्छा से इस्तेमाल को दिया। श्री डालमिया व वरिष्ठ चिकित्सक डा. ए.एन. राय ने भरोसा दिलाया कि बच्चों की शिक्षा में पैसा कभी बाधक नहीं बनेगा। स्वामी राघवाचार्य ने दंडीबाग मुहल्ले में बच्चों को रहने के लिए नि:शुल्क आवासीय परिसर उपलब्ध कराया। धीरे-धीरे मददगारों की संख्या बढ़ती गई। शुरुआत गीता कुमारी ने की। फिर राजू वर्णवाल, शिव अरुण डालमिया, राम अवतार धानुका, सुनील बरेलिया, धीरेन्द्र मुन्ना, हरि प्रसन्न उर्फ पप्पू, महारानी बस सर्विस के मुन्ना सिंह, एस.एस. भदानी, डा. अरविंद कुमार सिंह, अनिल स्वामी, गणेश सिंह, अजय कुमार शर्मा उर्फ युगल, नन्हे, डा. यू.एस. मिश्र, कमल नयन, श्याम भंडारी सहित कई मददगार सामने आये। वहीं विनय इंडेन सर्विस की मालकिन नीलम शरण ने रसोई गैस सिलेंडरों की आपूर्ति का जिम्मा उठाया। डा. ए.एन. राय, डा. पाण्डेय राजेश्र्वरी प्रसाद, डा. उमानाथ भदानी, डा. एस.एन. प्रसाद, डा. विजय जैन, डा. यशी शरण, डा. यू.एस. अरुण, डा. प्रमोद कुमार सिंह, डा. श्रीप्रकाश सिंह आदि ने एक-एक बच्चे पर आने वाले खर्च को वहन किया। बच्चों के लिए सप्ताह में कई प्रैक्टिस टेस्ट आयोजित किये गये। मगध सुपर 30 के बच्चों को रविवार को अपनी आंटी उषा डालमिया का इंतजार रहता था। आंटी उस दिन बच्चों के लिए ढेर सारी मिठाइयां लाती थीं। इन बच्चों के दिलों में अपनी प्यारी दीदी की यादें आज भी ताजा हैं। बच्चों की दीदी कोई और नहीं पटना की एसएसपी व गया की तत्कालीन एसपी आर.मल्लर विडि हैं। बात पिछले दिसम्बर की है। गया में शीतलहरी चल रही थी। बच्चे छात्रावास में भी सर्द हवाओं से परेशान थे। दीदी को इसकी भनक मिल गई। वे खुद बाजार गई, पालिथिन शीट ले छात्रावास पहुंची। इन बच्चों की सफलता के पीछे कई और लोगों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। मगध के तत्कालीन डीआईजी प्रवीण वशिष्ठ ने बच्चों को परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए गुरूमंत्र दिया। प्रमंडलीय आयुक्त डा. केपी रमैया व डीएम संजय कुमार सिंह ने भी कई बार बच्चों की हौसला अफजाई की। नवादा के तत्कालीन एसपी विनोद कुमार तथा चार आईपीएस दलजीत सिंह, सज्जु कुरूवेला, रंजीत मिश्र आदि ने दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में अपना पूरा समय गया में इन बच्चों के साथ बिताया। 1995 बैच के आईपीएस रविन्द्रण शंकरण ने बच्चों को अध्यात्मिक व योग की शिक्षा दी।
साभार : दैनिक जागरण , पटना
न बाउजी न, हम पढ़बो
स्थान-पटना का रहमानिया सुपर-30। तारीख-12 अप्रैल। समय-रात 8 बजे का। आई.आई.टी./जे.ई.ई. प्रतियोगिता परीक्षा देकर वापस लौटे सुपर-30 के छात्र आपस में चर्चा कर रहे थे। तभी विक्रम राज को किसी ने फोन किया। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव एक साथ आ रहे थे। किसी अभिन्न का आमंत्रण है शायद। पर वह स्वीकारने की स्थिति में नहीं है। लंबे अर्से के लगाव और जुड़ाव को नकार रहा है। लगभग एक ही शब्द दुहरा रहा है- न बाउजी न हम न अइबो, हम पढ़वो। उसके जीवन के समक्ष एक निर्दिष्ट लक्ष्य है। जाहिर है, इसी लिए वह स्नेह, संबंध, अपनापन-सारे संवेदनात्मक भावो को अपने आप से दूर रखने का निर्णय ले चुका है। विक्रम गया के मगध सुपर-30 का एक छात्र है। फोन करने वाले और कोई नहीं उसके पिता हैं। बुला रहे थे। बारिश शुरू हो जायेगी। कुछ ही दिनों में, छप्पर छाना है। बांस काटने के लिए घर आ जाओ। पिता वैसे पेशे से अधिवक्ता हैं। प्रैक्टिस न के बराबर है। ऐसे में पिता की चिंता वाजिब है। पर विक्रम का नकारना भी वाजिब है। उसे जीवन में ऊपर उठने का एक सुनहरा अवसर मिला है। वह उसे खोना नहीं चाहता। विक्रम दलित समाज से आता है। ऊंचे सपने देखने का हकदार नहीं था। पर मगध सुपर-30 और आईपीएस अधिकारी अभयानंद ने उसे इस काबिल समझा है, चुना है और एक मंच दिया है संघर्ष करने और अपनी क्षमता दिखाने का, तो वह बीच रास्ते में किसी की पुकार क्यों सुने? विक्रम के साथ एक और दुर्भाग्य साथ है। उसका इलाका यानी ग्राम चौंगाई, प्रखंड बांकेबाजार नक्सल प्रभावित इलाका है। पुलिस दिन में भी वहां जाने से कतराती है। क्षेत्र में सुविधाएं नगण्य है। इलाके में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) का वर्चस्व है। या यूं कहें कि क्षेत्र नक्सलियों का कथित मुक्त क्षेत्र है। जहां बच्चे शिक्षा के नाम पर लाल सलाम व नक्सली साहित्य से जुड़ाव रखते हैं। ऐसे में इस नियति को ललकारने की ताकत सुपर-30 की चयन परीक्षा ने दी। विक्रम को मगध सुपर-30 के आवासीय रख-रखाव ने हौसला दिया। जब वह वहां आया था तो साथ में दवाओं की पोटली थी। श्री अभयानंद की धर्मपत्नी डा. नूतन के प्रयास से विक्रम स्वस्थ हो गया। पढ़ने लगा। आवासीय परिसर में विक्रम जब आया था तो अपने क्षेत्र में बचपन से लेकर युवा होने तक सामंतवाद की कई कहानियां सुन रखा था। यहां तो अमित सिंह, मृत्युंजय मिश्र और आकांक्षा जैसे छात्र-छात्राओं के साथ एक पंगत तो कई बार एक थाली में बैठकर भोजन करने का सुयोग पाया, तो आंखें दूर तक देखने लगी। सपनों का संसार पुतलियों पर बैठ गया। श्री अभयानंद के हाथों का स्पर्श कंधे पर मिला तो लगा, जीवन में प्रवाह आ गया है। बीमारी पीछे छूट गयी। लक्ष्य बस एक ही रह गया-आई.आई.टी./जे.ई.ई. से जुड़ी शैक्षणिक तैयारी। विक्रम राज अपने लक्ष्य में सफल हो चुका है। विक्रम आई.आई.टी. के एक्सटेंटेड मेरिट लिस्ट में शामिल है। विक्रम अपने इलाके यानि नक्सलियों के कथित मुक्त क्षेत्र के असंख्य दलित-महादलित पर मेधावी छात्रों के लिए आने वाले समय में एक आदर्श चरित्र बनेगा। यह तय है। तब एक और आदर्श समाज में अपना आकार गढ़ेगा। सामाजिक समरसता पैदा करने का, नक्सली गतिविधियों को रोकने का इससे कारगर उपाय और कुछ भी नहीं है।
भांजे ने मामा को भी दिलायी सफलता
पटना : भागलपुर के रहने वाले अनुनय अनुरव पांडेय स्वयं तो आईआईटी में 633 वां स्थान लाया ही अपने मामा को साथ-साथ आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफलता दिलाने में सफल रहा। अनुनय के नाना-नानी काफी पहले ही गुजर गये थे। उसके मामा सरदेंदू की परवरिश बहन-बहनोई ही कर रहे थे। दोनों में रिश्ता मामा-भांजे का है परंतु उम्र में कोई विशेष अंतर नहीं है। अनुनय ने पढ़ाई में थोड़ा पीछे चल रहे मामा को भी रात-दिन भौतिकी, गणित व रसायन का पाठ पढ़ाकर इस काबिल बना दिया। इस बाबत अनुनय पांडेय ने बताया कि उसके पिता लुधियाना के एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करते हैं। मां हाउस वाइफ हैं। किसी तरह उसके पिता उसे व मामा को पढ़ाने का खर्च वहन कर रहे थे। भागलपुर में सुपर थर्टी की शाखा खुलने के बाद वे दोनों प्रवेश परीक्षा में सफल हो गये। वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अभयानंद के मार्गदर्शन में उनलोगों की पढ़ाई शुरू हो गई। परंतु बीच में ही शिक्षकों की कमी के कारण उनलोगों राजधानी के यूरेका इंस्टीट्यूट आफ साइंस में लाया गया। इस संस्थान के निदेशक डा.अजय कुमार ने उसके बाकि की पढ़ाई को पूरा किया। स्वयं अभयानंद प्रतिदिन आकर पांचों को पढ़ाते थे। अनुनय ने बताया कि भागलपुर के जिस मोहल्ले में वह रहता है वहां आईआईटी के नाम से भी अधिकांश लोग अपरिचित हैं। दोनों मामा-भांजा मोहल्ले का पहला छात्र है जिसने इस प्रवेश परीक्षा में सफलता पायी है। वहीं सरदेंदू ने बताया कि बचपन में ही उसके माता-पिता का साया सिर से उठ गया था। बहन-बहनोई ने पाल-पोस कर बड़ा किया और इस लायक बना दिया। मुंगेर के ही एक प्राध्यापक के बेटे विशाल भी अपने रिजल्ट से काफी खुश है। वह एक साधारण छात्र था परंतु मेहनत के बूते इस मुकाम तक पहुंचने में सफल रहा। मुंगेर में ही छोटे से हार्डवेयर दुकान चलाने वाले कपिलदेव प्रसाद की उतनी हैसियत नहीं थी कि वह अपने बेटे विवेक को महंगे कोचिंग संस्थान में दाखिला दिला सके। संयोगवश उसका बेटा सुपर थर्टी में चयनित हो गया और आईआईटी जेईई में सफल रहा। उसे आल इंडिया में 3724 रैंक आया है। बांका के ही ज्ञानेश शरण ने इस परीक्षा में सफलता के पीछे कठिन परिश्रम एवं उचित मार्गदर्शन को माना है।
साभार : दैनिक जागरण , पटना एडिशन
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