Saturday, February 4, 2012

न्याय का दिखा दम, अपराध हुआ कम


न्याय का दिखा दम, अपराध हुआ कम

 

संजय उपाध्याय | फरवरी 3, 2012 18:30
 
लोग इसे बिहार का 'स्वर्णद्वीप' भी कहते हैं. यहां के करीब 75 हजार लोग खाड़ी देशों में रह कर हर महीने करोड़ों रूपये भेजते हैं. यहां की मनी आर्डर अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत है कि निजी छोड़ कर अकेले लीड बैंक के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीयकृत बैंकों में 3,600 करोड़ रूपये जमा हैं. यहां एडिडास के सफेद जूते पहने और महंगी बाइक पर सवार युवक आमतौर पर दिख जाते हैं. लालू-राबड़ी शासन काल में यहां किसी लोकतांत्रिक सरकार का नहीं, बल्कि यहां के बाहुबली सांसद रहे शहाबुद्दीन का सिक्का चलता था. कुछ साल पहले सीवान एक खौफनाक जगह थी, जहां दिनदहाड़े हत्या, अपहरण आम था. तेजतर्रार आईपीएस-आईएएस अधिकारियों को भी वहां के सांसद रहे शहाबुद्दीन के साथ समझौता करके रहना पड़ता था. पर, वे दिन अब नहीं रहे. 2005 में चुनाव आयोग की सख्ती और 2006 में स्पीडी ट्रायल की शुरुआत से ही बिहार की राजनीतिक-सामाजिक फिजा बदलने लगी थी. फिलहाल, शहाबुद्दीन सीवान जेल में ही सलाखों के पीछे हैं. अब, वहां 'शहाबु' या 'साहेब' की नहीं, कानून की चलती है. दिन क्या...रात में भी लोग वहां अब बेधड़क घूमते नजर आ जाते हैं. 

अकेले शहाबुद्दीन ही बदल रहे बिहार के नजीर नहीं हैं. अलग-अलग जगह के क्षत्रप, जो सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था को ही हाईजैक कर चुनाव की हवा को अपने पक्ष में कर लेते थे-वे भी सलाखों के पीछे हैं. उदाहरण के तौर पर अपराध के घोड़े पर सवार सतीश पांडेय (गोपालगंज), राजन तिवारी (चंपारण), मुन्ना शुक्ला (तिरहुत), आनंद मोहन (सहरसा),पप्पू यादव (पूर्णिया-सहरसा) तथा बिंदु सिंह (जहानाबाद) के जमाने लद गए, जब वे अपराध को अंजाम दे-दिलाकर कानून की लंबी-जटिल प्रक्रिया का लाभ उठाते हुए जमानत लेकर बाहर या वारंट लेकर जेल के भीतर स्टेट गेस्ट का मजा लेते रहते थे. आलम यह है कि स्पीडी ट्रायल के तहत करीब 65 हजार अभियुक्त सलाखों के पीछे हैं. 

गंडक के दुर्गम दियारे से लेकर चंपारण के घने जंगल यानी बिहार के मिनी चंबल के डाकुओं को 80 से 90 के दशक में सत्ता के गलियारे में भी घूमता देखा जाता था. दिन-दहाड़े लोगों को उठा लेना और फिरौती वसूलने का काम इनका जंगल उद्योग बना हुआ था. डकैतों के इन गिरोहों में सबसे खतरनाक सरगना वासुदेव यादव के खिलाफ यूपी, बिहार और नेपाल में दर्जनों अपराध दर्ज थे और पुलिस उसे पकडऩे में नाकाम. करीब तीन दशकों की फरारी के दौरान उसने संवाददाता को बताया था कि पुलिस के आला हुक्मरान तक उससे अपराधी को पकडऩे के लिए मदद की गुहार लगाते हैं. 

फिलहाल, वह आत्मसमर्पण कर बेतिया जेल में है. उसके साथ, भांगड़ यादव, सतन यादव और रासबिहारी यादव भी वहीं खिचड़ी खा रहे हैं. सूबे के पुलिस महानिदेशक बनने से कई वर्षों पूर्व चंपारण में दस्यु उन्मूलन अभियान की लगाम थामे अभयानंद ने बताया कि 'पहले सजा देने की प्रक्रिया धीमी थी. स्पीडी ट्रायल, स्पेशल कोर्ट व फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से लंबित पड़े मामलों की सुनवाई की गई. इनमें स्पीडी ट्रायल की भूमिका अहम है. जनवरी, 2006 से दिसंबर, 2011 तक 65 हजार से भी अधिक अभियुक्त सलाखों के पीछे हैं. करीब 150 को तो फांसी की सजा सुना दी गई है.' 

दिलचस्प यह है कि मोटरसाइकिल लूट के एक मामले में पुलिस और स्पीडी ट्रायल ने इतना तेज काम किया कि जनवरी, 2012 में अपराध घटने के महज 10 दिनों में ही सजा सुनाकर देश में एक मिसाल पेश की है. 12 जनवरी को तीन लुटेरे पिस्तौल और देसी रिवॉल्वर के साथ मोटरसाइकिल लूटते पकड़े गए, 14 जनवरी को पुलिस ने चार्जशीट जमाकर स्पीडी ट्रायल के लिए कोर्ट से गुहार लगाई. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने दैनिक स्तर पर मामले की सुनवाई करते हुए 23 जनवरी को तीन वर्षों तक सश्रम कारावास की सजा सुना दी. 

हाल के दिनों में स्पीडी ट्रायल नतीजों से उत्साहित पुलिस महानिदेशक ने घोषणा की है कि अब तीन महीने के भीतर ही फैसला सुना दिया जाएगा. पुलिस अधिकारियों के अनुसार जूनियर अफसरों द्वारा की गई जांच-पड़ताल के कार्यों की वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर की जा रही मासिक समीक्षा और विजिलेंस के भय से भी अपराध निरोधी माहौल तैयार हुआ है. लोगों में जागृति भी आई है. अपराध होने पर लोगों का आक्रोश सड़कों पर भी दिखने लगता है. नतीजा, निचले स्तर पर भी पुलिस सख्त हुई है. स्पीडी ट्रायल में तो चश्मदीद अथवा गवाह को मुकरने का मौका तक नहीं मिलता.

पहले गवाह को रूपये-पैसों का लालच अथवा डरा-धमकाकर मुकरने के लिए बाध्य कर दिया जाता था. सीवान के आरक्षी अधीक्षक अमृत राज कहते हैं, 'अपराध के खिलाफ त्वरित कार्रवाई  हो रही है.' हालांकि, अब भी जर्मनी से अधिक जनसंख्या वाला बिहार बाढ़, नक्सल व जातीय द्वेष से उबर नहीं सका है, लेकिन अपराध के मसले पर नकेल इस तरह कसी है कि, पलायन कर रहे व्यापारी लौटने लगे हैं.

बहरहाल, अपराधियों को जेल से निकलने के बाद भी चैन नहीं मिलने वाला. 14 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने घोषणा की है कि सभी अपराधियों के कृत्यों को वेबसाइट पर डालते हुए उन्हें किसी तरह का लाइसेंस, पासपोर्ट तथा अन्य उन सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा, जो एक बोनाफाईड नागरिक को मिलता है, ताकि जेल से छूटने के बाद भी उन्हें अहसास होता रहे कि उन्होंने कभी अपराध किया था. मतलब, एक तरह का सामाजिक दंड. प्रथम चरण में 1,450 लोगों की सूची बिहार सरकार ने वेबसाइट पर जारी कर दी है. जल्द ही अन्य लोगों सूची को भी साइट पर जल्द डाल दिया जाएगा. स्पीडी ट्रायल के बाद अपराध नियंत्रण के मामले में यह अपने किस्म की एक अलग ही पद्धति है.

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