Monday, December 5, 2011

एक आईपीएस का प्रयोग : बंदूक गलाओ, फरसा बनाओ



तीन महीने पहले, 31 अगस्त 2011 को 1977 बैच के बिहार कैडर के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अभयानंद ने सूबे के पुलिस महानिदेशक की कमान संभाली। तब उनके जेहन में यह सवाल उठा था कि विभिन्न थानों के मालखाने में जब्त अवैध अस्लहों का क्या किया जाए? प्रदेश में  824 पुलिस स्टेशन हैं। सन् 2000 से अगस्त 2011 तक पुलिस ने तकरीबन पौने दो लाख हथियार अपराधियों एवं उग्रवादियों से बरामद किए थे।
उनमें एके 47, कारबाइन, स्टेनगन, रायफल, बंदूक, माउजर, पिस्तौल, देसी कट्टा वगैरह थे। वैसे सूत्रों के मुताबिक अभी प्रांत में औसतन 10 आग्नेयास्त्र  प्रत्येक माह पुलिस के हाथ लगते हैं। हालांकि राजद राज में, खासकर मार्च 2000 से 4 मार्च, 2005 तक पांच सालों में हजारों-लाखों की संख्या में गैर-आईनी हथियार पुलिस ने बटोरे थे।

बहरहाल, प्रांतीय पुलिस प्रमुख की जिम्मेदारी मिलते ही अभयानंद ने पता लगाया कि मालखानों में कितने ऐसे हथियार हैं जिनके मामले अदालत द्वारा निबटाए जा चुके हैं। इस बाबत उन्हें खबर लगी कि 60 हजार अस्लहों के केस बाकायदा खत्म हो गए हैं। डीजीपी ने अदालत से इजाजत लेकर सामाजिक रूप से इस्तेमाल में आने वाले औजार बनाने का फरमान जारी कर डाला। मसलन, दरभंगा में सरिये, फावड़े, बेलचे, कुदाल आदि के निर्माण धड़ल्ले से जारी है। उन्हें पुलिस की मौजूदगी में लोहार पहले गलाते हैं। तब उपकरण का रूप प्रदान किया जाता है। ज्यादातर कृषि संबंधित उपकरण ही फिलवक्त तैयार करने का जोर पुलिस महानिदेशक का है। उम्मीद है कि बहुत ही कम दाम पर औजार काश्तकारों को उपलब्ध कराये जाएंगे। लोहारों को भी उचित राशि मुहैया कराई जाएगी। मुजफफरपुर में भी औजार ढालने का काम रफतार पकड़ चुका है।

सवाल उठता है कि अस्लहों को नेस्ताबूद कर उनसे उपकरण बनाना क्या न्यायसंगत है? अभयानंद शुक्रवार को बताते हैं- पुलिस मैन्युअल में स्पष्ट प्रावधान है कि डीजीपी उन शस्त्रों को नष्ट कर सकते हैं जिन्हें पुलिस ने जब्त कर रखा है और जिनकी उपयोगिता नहीं है। बेशक इसमें सावधसनी यही बरतनी होती है कि जिस कांड में हथियार पकड़े गए हैं, उस मुकदमे को कोर्ट ने निर्णय दे कर दिया हो। सीआरपीसी की धारा के तहत ही न्यायालय इस प्रकार के आदेश पारित करती है।

आर्थिक अपराध  समाज, राज्य एवं देश को दीमक की तरह चाट रहा है, यह टिप्पणी पुलिस महानिदेशक ने  की। लिहाजा, इस पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से अभयानंद ने आर्थिक अपराध इकाई बनाने का प्रस्ताव भी सरकार के पास भेजा है। उन्हें इसकी अधिसूचना शीघ्र ही जारी होने की उम्मीद है। बकौल डीजीपी इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक जिले में दो-तीन अफसरों को रखा जाएगा। वे दर्ज आर्थिक अपराधों का ही सिर्फ अनुसंधान करेंगे। इन अधिकारियों को ट्रेनिंग सीबीआइ देगी। गाजियाबाद में उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा। इस सिलसिले में सीबीआइ के निदेशक से गुजारिश की गई है। इसके अलावा यहां एक और आर्थिक अपराध यूनिट संगठित की गई है। इसका लक्ष्य होगा कालेधन पर रोक लगाना, जिस स्रोत से कालेधन का जन्म हो रहा है, उसे ही मटियामेट करना, ध्वस्त करना, जो राजस्व की हानि के लिए जिम्मेदार हैं, विकास कार्यो में घोटाले कर रहे हैं, कानून के दायरे में उनकी चल-अचल संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। भारत सरकार की एजेंसियों से भी अभयानंद ने अनुरोध किया है कि वे उनकी सहायता करें। वह खुलासा करते हैं कि आर्थिक अपराध के लिए पुलिस पहली मर्तबा तफतीश करेगी। उनके अनुसार आर्थिक अपराध का सीधा रिश्ता माओवादियों, नक्सलियों के बढ़ने से है। साथ ही नक्सलवादी इलाकों में तरक्की के कार्य होने भी आवश्यक हैं। नक्सली भी तो हमारी तरह ही इस मुल्क के नागरिक हैं।

खेल के क्षेत्र  में अभयानंद ने चक दे बिहार का जुमला उछाल रखा है। बीएमपी मैदान, पटना में उन्होंने बास्केटबॉल के अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का निर्माण शुरू करवा दिया है। एक कोर्ट की स्थापना पर करीब 35 लाख की रकम खर्च होगी। कबड्डी चूंकि अब मिट्टी में नहीं खेली जाती, बल्कि मैट पर उसकी उठापटक होती है, इसलिए अभयानंद की पहल पर विभाग मैट की खरीदारी करने वाला है। अभयानंद का ज्ड्रीम प्रोजेक्ट है बीएमपी ग्राउंड पटना को खेल गांव में तब्दील करना। चक दे बिहार का नारा अभयानंद ने 2008 में उस वक्त दिया था जब वे बीएमपी के एडीजी थे। इसे अमलीजामा पहनाने वास्ते उन्होंने डेढ़ सौ गरीब बच्चों का चयन किया। फिर उनमें से 75 लोगों को बास्केटबॉल, हैंडबॉल, एथलीट एवं हॉकी के खेल में कोच ने तीन सालों तक ट्रेंड करने में अपना तन-मन लगाया। नतीजतन, पूर्वी क्षेत्र एथलीट चैंपियनशिप प्रतियोगिता में चार लड़कों ने स्वर्ण तथा रजत पदक जीता। यह एथलीट प्रतियोगिता कोलकाता में हुई थी। जूनियर नेशनल बास्केटबॉल चैंपियन (19 वर्ष के अंदर के लड़के), स्कूल गेम फेडरेशन ऑफ इंडिया, नेशनल यूथ बास्केटबॉल चैंपियनशिप (17 साल तक के नौजवान) में नीतीश कुमार, रूपेश कुमार, सोनू कुमार, विकास गुप्ता चुने गए। आज की तारीख में सभी के सभी बिहार बास्केटबॉल टीम के अंग हैं। हैंडबॉल के लिए पांच लड़के-लड़कियां इधर चेन्नई के लिए रवाना हुए हैं। वहां राष्ट्रीय हैंडबॉल चैंपियनशिप होने जा रही है। हिंदुस्तान के कई प्रदेशों में 23 बच्चों ने जूनियर एवं सीनियर हॉकी चैंपियनशिप में अपना शानदार प्रदर्शन दिखाया है। सन् 2010 और 2011 में उन्हें मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय हॉकी चैंपियनशिप खेलने का भी मौका मिला है। जाहिर है चक दे बिहार ने देश में अपना परचम लहराया है। कुश्ती में अभयानंद ने कामेश्वर को बतौर कोच बहाल किया था। वही कामेश्वर कुश्ती कोच बनकर लंदन जा रहे हैं। डीजीपी के समक्ष बड़े-बड़े वेकों को लेकर छिड़ी गैंगवार एवं छोटी-सी घटना होने पर लोगों द्वारा कानून अपने हाथ में लेना अभी सबसे बड़ी चुनौती है। इस पर सख्ती से अंकुश नहीं लगाया गया तो सारे नुस्खे धरे के धरे रह जाएंगे।  

1 comment:

desertdew said...

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