Tuesday, December 27, 2011

समय बदल रहा, हम भी बदलें

दैनिक जागरण , पटना संस्करण लिखते हैं : 

पटना, कार्यालय संवाददाता : समय बदल रहा है, हम भी बदलेंगे। समस्याएं हैं पर उनके समाधान के कदम भी उठाए जा रहे हैं। पुराने समय से चली आ रही व्यवस्था धीरे-धीरे ही ठीक होगी। पुलिस के सामने भी कई प्रकार की मजबूरी होती है। संविधान के अनुसार ही काम करना पड़ता है। पहले जांच कर लें, फिर एफआईआर लिखें, ऐसा संभव नहीं है। उक्त बातें डीजीपी अभ्यानंद ने शनिवार को कहीं। उन्होंने बिहार चैम्बर आफ कामर्स के सभागार में आयोजित बैठक में पहले व्यवसायी वर्ग की समस्याएं सुनीं और बाद में क्रमवार उनका जवाब दिया। बैठक में उद्यमी समुदाय की ओर से पुलिस महानिदेशक अभ्यानंद का स्वागत करते हुए कहा गया कि उनके कार्यभार ग्रहण करने के बाद से अपराध में जिस तेजी से गिरावट आई है, वह अपने आप में सुखद है। समाज में भयमुक्त वातावरण बना है। संगठित अपराध पर विराम लगा है। आज देश के उन राज्यों की श्रेणी में सूबे की गिनती तीसरे नंबर पर होती है, जहां अपराध दर काफी कम है। बैठक में प्रमुख रूप से ट्रैफिक की समस्या को रखते हुए कहा गया कि सीनियर अफसर से मिलते वक्त लगता है कि उनकी बात सुनी जा रही है, पर थाने आज भी पुरातन शैली में ही काम कर रहे हैं। व्यवहार देख थाने जाने पर भय लगता है। बैठक में उठी समस्याओं पर क्रमवार बोलते हुए डीजीपी अभ्यानंद ने बेतिया के एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि टेलीफोन पर मिली शिकायत के बाद 6 दिसंबर 11 को एफआईआर लिखी गयी और अब तक चार गवाही भी गुजर चुकी है। आप लोगों ने झूठे मुकदमे में फंसाने की जो बात कही है, उसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि शिकायत मिलने के बाद पहले जांच और फिर प्राथमिकी संभव नहीं है। झूठे मुकदमे में फंसाए जाने व्यक्ति को सताना नहीं चाहिए। हम इस दिशा में प्रयास भी कर रहे हैं। जब भी डीएसपी या एसपी जांच को जाएं, तो सबके सामने यह बात रख देनी चाहिए कि अमुक दोषी नहीं है। जहां तक ट्रैफिक जाम की बात है, उससे वे भी सहमत हैं। कभी-कभी उनको भी सोचना पड़ता है कि दिन के समय उस एरिया में जाएं या न जाएं। समस्या समाधान के लिए हम सबको मिल-बैठकर रास्ता निकालना होगा। बैठक में पुलिस महानिरीक्षक जेएस गंगवार, उपपुलिस महानिरीक्षक एस. रविन्द्रन, ग्रामीण एसपी मनोज कुमार, चैम्बर अध्यक्ष ओपी साह, उपाध्यक्ष शशिमोहन, पूर्व अध्यक्ष जुगेश्वर पांडेय, पीके अग्रवाल, निर्वाचित महासचिव संजय खेमका आदि ने विचार व्यक्त किये।

Wednesday, December 21, 2011

Economic offence cell to book people causing loss to govt


PATNA: An Economic Offence Cell (EOC) under direct control of DGP Abhayanand, has been constituted at the state police headquarters to investigate cases of economic offence by the general public involved in misappropriation and misuse of government money and for confiscation of their property on conviction order passed by the court.

The EOC to be headed by IG, economic offence, Praveen Vashishth would comprise of a DIG (economic offence), SP (food) and SP (economic offence/cyber crime), 10 DSPs, 32 police inspectors, 72 SIs, two programmers, nine havildars and 10 other personnel. Their special training would be held at the CBI Training Centre at Ghaziabad.
The EOC will control the investigation of such economic offence cases by the district police and provide guidance to them to improve the quality of investigation of these cases. The food cell and cyber crime cell and cooperative cell of the police headquarters would be under this EOC, said Abhayanand.
The EOC would be located at the Biscomaun building here. It will apply the provisions of Criminal Law Amendment Act, 1944, which was enacted by the colonial British government to nab economic offenders among the general public, the DGP told TOI.
Abhayanand said that the cell is 'unique' in the sense that it will launch proceedings for confiscation of property of the public who would be found to have caused loss to the government by their involvement in misappropriation and misuse of funds.
The Special Court Act enacted by the government has brought into its net only the government servants involved in misappropriation of government money and on their conviction by the Special Court for confiscation of immovable property of the government official, he said.
He said that the provisions of this Act is being applied by the CBI to nab the general public people causing loss to government. The DGP said that the provision of this 1944 law was never applied at least in the state of Bihar.
The DGP said that he and some other IPS officials, who have been included in the cell, had while in the CBI learnt the use of Criminal Law Amendment Act, 1944, to investigate the cases of economic offence by the public. Now, use of this law for investigation and confiscation of property of the general public involved in causing huge economic loss to the government would be started.
With improvement in the economic situation in Bihar, there has been immense change in the nature of economic offences in the state, he said, adding that the total benefit of the welfare schemes were not reaching the target groups in the society. There is every possibility of misappropriation and misuse of government money during implementation of welfare schemes, he said.

Dolphin mascot for Police Games


PATNA: Bihar DGP Abhayanand along with four other DGs,Ashok Kumar Gupta, Manoje Nath, V Narayan and Shafi Alam on Friday released the mascot for the ensuing All India Police Games to be held from February 1 to 5, 2012, at Mithilesh Stadium here. The mascot for the games is 'dolphin', symbolizing its importance in the Gangetic region.
Speaking on the occasion, Abhayanand said that Bihar had been given a cluster of games, which include volleyball, handball, kabaddi and basketball, to be held during the ensuing 60th All India Police Games. "It is a proud moment for Bihar police to organize such a historic event," he said and added that it was after a lapse of 17 years that Bihar police had been given the responsibility of holding such an event. DG (home guards) Manoje Nath and other senior police officials expressed the hope that the meet would be a success.

Wednesday, December 14, 2011

DGP Abhayanand Initiative



हिंदुस्तान पटना अपने पहले पन्ने पर् लिखते हैं :- 
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Monday, December 5, 2011

डीजीपी अभयानंद ने सभी जिलों के आरक्षी अधीक्षकों को यह हिदायत भेजी है कि अपहरण से जुड़े सभी मामलों का हर हाल में स्पीडी ट्रायल कराया जाये।


पटना, जागरण ब्यूरो : डीजीपी अभयानंद ने सभी जिलों के आरक्षी अधीक्षकों को यह हिदायत भेजी है कि अपहरण से जुड़े सभी मामलों का हर हाल में स्पीडी ट्रायल कराया जाये। पुलिस अधिकारियों को इस बाबत जवाबदेह बनाया जाये। डीजीपी ने रविवार को कहा कि उन्होंने स्पीडी ट्रायल के मामलों की समीक्षा की है। इस क्रम में यह बात सामने आयी कि पिछले कुछ माह के दौरान छुट्टियों की वजह से ट्रायल स्पीडी स्वरूप में नहीं आ पाया। पुन: इस गति को तीव्र करने को ले सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया गया है। मुख्यालय के स्तर पर इसकी नियमित मानीटरिंग हो रही है।डीजीपी ने बताया कि बेतिया में दर्ज अपहरण मामलों में हर हाल में स्पीडी ट्रायल अपहरण के एक मामले में पुलिस ने स्पीडी ट्रायल करा पांच अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा दिलवायी। तीन नवंबर 2009 को बेतिया स्थित गुलाब मेमोरियल कालेज से संजय नाम के एक विद्यार्थी का अपहरण हो गया था। अज्ञात अपराधियों के खिलाफ इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी। मामला काफी पेचीदा था। अपहरण के छह दिन बाद फिरौती का फोन आया था। काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने अपहृत को बगहा से बरामद किया। इस मामले में आरंभ में जब ट्रायल शुरू हुआ तो रफ्तार काफी धीमी थी। इसके बाद पुलिस मुख्यालय के हस्तक्षेप के बाद ट्रायल में गति आयी और दो दिन पूर्व इस कांड में नामजद पांच अपहर्ताओं को आजीवन कारावास की सजा हुई है। जिन पांच अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा हुई है उनमें सुखारी यादव, संतोष साह, प्रदीप श्रीवास्तव, बंटी श्रीवास्तव व शोभा चौधरी शामिल हैं। 

एक आईपीएस का प्रयोग : बंदूक गलाओ, फरसा बनाओ



तीन महीने पहले, 31 अगस्त 2011 को 1977 बैच के बिहार कैडर के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अभयानंद ने सूबे के पुलिस महानिदेशक की कमान संभाली। तब उनके जेहन में यह सवाल उठा था कि विभिन्न थानों के मालखाने में जब्त अवैध अस्लहों का क्या किया जाए? प्रदेश में  824 पुलिस स्टेशन हैं। सन् 2000 से अगस्त 2011 तक पुलिस ने तकरीबन पौने दो लाख हथियार अपराधियों एवं उग्रवादियों से बरामद किए थे।
उनमें एके 47, कारबाइन, स्टेनगन, रायफल, बंदूक, माउजर, पिस्तौल, देसी कट्टा वगैरह थे। वैसे सूत्रों के मुताबिक अभी प्रांत में औसतन 10 आग्नेयास्त्र  प्रत्येक माह पुलिस के हाथ लगते हैं। हालांकि राजद राज में, खासकर मार्च 2000 से 4 मार्च, 2005 तक पांच सालों में हजारों-लाखों की संख्या में गैर-आईनी हथियार पुलिस ने बटोरे थे।

बहरहाल, प्रांतीय पुलिस प्रमुख की जिम्मेदारी मिलते ही अभयानंद ने पता लगाया कि मालखानों में कितने ऐसे हथियार हैं जिनके मामले अदालत द्वारा निबटाए जा चुके हैं। इस बाबत उन्हें खबर लगी कि 60 हजार अस्लहों के केस बाकायदा खत्म हो गए हैं। डीजीपी ने अदालत से इजाजत लेकर सामाजिक रूप से इस्तेमाल में आने वाले औजार बनाने का फरमान जारी कर डाला। मसलन, दरभंगा में सरिये, फावड़े, बेलचे, कुदाल आदि के निर्माण धड़ल्ले से जारी है। उन्हें पुलिस की मौजूदगी में लोहार पहले गलाते हैं। तब उपकरण का रूप प्रदान किया जाता है। ज्यादातर कृषि संबंधित उपकरण ही फिलवक्त तैयार करने का जोर पुलिस महानिदेशक का है। उम्मीद है कि बहुत ही कम दाम पर औजार काश्तकारों को उपलब्ध कराये जाएंगे। लोहारों को भी उचित राशि मुहैया कराई जाएगी। मुजफफरपुर में भी औजार ढालने का काम रफतार पकड़ चुका है।

सवाल उठता है कि अस्लहों को नेस्ताबूद कर उनसे उपकरण बनाना क्या न्यायसंगत है? अभयानंद शुक्रवार को बताते हैं- पुलिस मैन्युअल में स्पष्ट प्रावधान है कि डीजीपी उन शस्त्रों को नष्ट कर सकते हैं जिन्हें पुलिस ने जब्त कर रखा है और जिनकी उपयोगिता नहीं है। बेशक इसमें सावधसनी यही बरतनी होती है कि जिस कांड में हथियार पकड़े गए हैं, उस मुकदमे को कोर्ट ने निर्णय दे कर दिया हो। सीआरपीसी की धारा के तहत ही न्यायालय इस प्रकार के आदेश पारित करती है।

आर्थिक अपराध  समाज, राज्य एवं देश को दीमक की तरह चाट रहा है, यह टिप्पणी पुलिस महानिदेशक ने  की। लिहाजा, इस पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से अभयानंद ने आर्थिक अपराध इकाई बनाने का प्रस्ताव भी सरकार के पास भेजा है। उन्हें इसकी अधिसूचना शीघ्र ही जारी होने की उम्मीद है। बकौल डीजीपी इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक जिले में दो-तीन अफसरों को रखा जाएगा। वे दर्ज आर्थिक अपराधों का ही सिर्फ अनुसंधान करेंगे। इन अधिकारियों को ट्रेनिंग सीबीआइ देगी। गाजियाबाद में उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा। इस सिलसिले में सीबीआइ के निदेशक से गुजारिश की गई है। इसके अलावा यहां एक और आर्थिक अपराध यूनिट संगठित की गई है। इसका लक्ष्य होगा कालेधन पर रोक लगाना, जिस स्रोत से कालेधन का जन्म हो रहा है, उसे ही मटियामेट करना, ध्वस्त करना, जो राजस्व की हानि के लिए जिम्मेदार हैं, विकास कार्यो में घोटाले कर रहे हैं, कानून के दायरे में उनकी चल-अचल संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। भारत सरकार की एजेंसियों से भी अभयानंद ने अनुरोध किया है कि वे उनकी सहायता करें। वह खुलासा करते हैं कि आर्थिक अपराध के लिए पुलिस पहली मर्तबा तफतीश करेगी। उनके अनुसार आर्थिक अपराध का सीधा रिश्ता माओवादियों, नक्सलियों के बढ़ने से है। साथ ही नक्सलवादी इलाकों में तरक्की के कार्य होने भी आवश्यक हैं। नक्सली भी तो हमारी तरह ही इस मुल्क के नागरिक हैं।

खेल के क्षेत्र  में अभयानंद ने चक दे बिहार का जुमला उछाल रखा है। बीएमपी मैदान, पटना में उन्होंने बास्केटबॉल के अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का निर्माण शुरू करवा दिया है। एक कोर्ट की स्थापना पर करीब 35 लाख की रकम खर्च होगी। कबड्डी चूंकि अब मिट्टी में नहीं खेली जाती, बल्कि मैट पर उसकी उठापटक होती है, इसलिए अभयानंद की पहल पर विभाग मैट की खरीदारी करने वाला है। अभयानंद का ज्ड्रीम प्रोजेक्ट है बीएमपी ग्राउंड पटना को खेल गांव में तब्दील करना। चक दे बिहार का नारा अभयानंद ने 2008 में उस वक्त दिया था जब वे बीएमपी के एडीजी थे। इसे अमलीजामा पहनाने वास्ते उन्होंने डेढ़ सौ गरीब बच्चों का चयन किया। फिर उनमें से 75 लोगों को बास्केटबॉल, हैंडबॉल, एथलीट एवं हॉकी के खेल में कोच ने तीन सालों तक ट्रेंड करने में अपना तन-मन लगाया। नतीजतन, पूर्वी क्षेत्र एथलीट चैंपियनशिप प्रतियोगिता में चार लड़कों ने स्वर्ण तथा रजत पदक जीता। यह एथलीट प्रतियोगिता कोलकाता में हुई थी। जूनियर नेशनल बास्केटबॉल चैंपियन (19 वर्ष के अंदर के लड़के), स्कूल गेम फेडरेशन ऑफ इंडिया, नेशनल यूथ बास्केटबॉल चैंपियनशिप (17 साल तक के नौजवान) में नीतीश कुमार, रूपेश कुमार, सोनू कुमार, विकास गुप्ता चुने गए। आज की तारीख में सभी के सभी बिहार बास्केटबॉल टीम के अंग हैं। हैंडबॉल के लिए पांच लड़के-लड़कियां इधर चेन्नई के लिए रवाना हुए हैं। वहां राष्ट्रीय हैंडबॉल चैंपियनशिप होने जा रही है। हिंदुस्तान के कई प्रदेशों में 23 बच्चों ने जूनियर एवं सीनियर हॉकी चैंपियनशिप में अपना शानदार प्रदर्शन दिखाया है। सन् 2010 और 2011 में उन्हें मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय हॉकी चैंपियनशिप खेलने का भी मौका मिला है। जाहिर है चक दे बिहार ने देश में अपना परचम लहराया है। कुश्ती में अभयानंद ने कामेश्वर को बतौर कोच बहाल किया था। वही कामेश्वर कुश्ती कोच बनकर लंदन जा रहे हैं। डीजीपी के समक्ष बड़े-बड़े वेकों को लेकर छिड़ी गैंगवार एवं छोटी-सी घटना होने पर लोगों द्वारा कानून अपने हाथ में लेना अभी सबसे बड़ी चुनौती है। इस पर सख्ती से अंकुश नहीं लगाया गया तो सारे नुस्खे धरे के धरे रह जाएंगे।  

Economic offence cell to book people causing loss to govt


The Times of India Writes : 
PATNA: An Economic Offence Cell (EOC) under direct control of DGP Abhayanand, has been constituted at the state police headquarters to investigate cases of economic offence by the general public involved in misappropriation and misuse of government money and for confiscation of their property on conviction order passed by the court.
The EOC to be headed by IG, economic offence, Praveen Vashishth would comprise of a DIG (economic offence), SP (food) and SP (economic offence/cyber crime), 10 DSPs, 32 police inspectors, 72 SIs, two programmers, nine havildars and 10 other personnel. Their special training would be held at the CBI Training Centre at Ghaziabad.

The EOC will control the investigation of such economic offence cases by the district police and provide guidance to them to improve the quality of investigation of these cases. The food cell and cyber crime cell and cooperative cell of the police headquarters would be under this EOC, said Abhayanand.
The EOC would be located at the Biscomaun building here. It will apply the provisions of Criminal Law Amendment Act, 1944, which was enacted by the colonial British government to nab economic offenders among the general public, the DGP told TOI.
Abhayanand said that the cell is 'unique' in the sense that it will launch proceedings for confiscation of property of the public who would be found to have caused loss to the government by their involvement in misappropriation and misuse of funds.
The Special Court Act enacted by the government has brought into its net only the government servants involved in misappropriation of government money and on their conviction by the Special Court for confiscation of immovable property of the government official, he said.
He said that the provisions of this Act is being applied by the CBI to nab the general public people causing loss to government. The DGP said that the provision of this 1944 law was never applied at least in the state of Bihar.
The DGP said that he and some other IPS officials, who have been included in the cell, had while in the CBI learnt the use of Criminal Law Amendment Act, 1944, to investigate the cases of economic offence by the public. Now, use of this law for investigation and confiscation of property of the general public involved in causing huge economic loss to the government would be started.
With improvement in the economic situation in Bihar, there has been immense change in the nature of economic offences in the state, he said, adding that the total benefit of the welfare schemes were not reaching the target groups in the society. There is every possibility of misappropriation and misuse of government money during implementation of welfare schemes, he said.