साभार : बी बी सी हिंदी
भारत में मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. ऐसे में किसी मदरसा में मिल रही तालीम से क्या मुसलमान छात्रों का भला हो सकता है?
इस सवाल का जवाब हमें बिहार की राजधानी पटना में मिलता दिखाई दे रहा है.
बिहार में आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी को लेकर सबसे पहले अभ्यानंद ने सुपर-30 के नाम से एक अनोखा प्रयोग किया था जो काफ़ी सफल रहा.
इसी सुपर-30 की कामयाबी से प्रेरित होकर पटना के एक मदरसे में रहमानी-30 की शुरुआत की गई. ये मदरसा क़रीब 100 वर्ष पुराने मकान में चलता है.
इस मदरसा में देश के उच्च तकनीकी संस्थान यानि आईआईटी में दाख़िले की तैयारी हो रही है.
विद्यार्थियों का एक साथ रहना, खाना और पढ़ाई करना मदरसा का मूलमत्र है. यहां कोई भेदभाव नहीं है, सब बराबर है.
मौलाना वली रहमानी
यहां विद्यार्थियों को न तो बैठने के लिए बेंचे हैं और न ही पढ़ाई करने के लिए पर्याप्त रोशनी.
इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद मौलाना वली रहमानी अत्यंत ग़रीब मुसलमानों के प्रतिभावान बच्चों को मुफ़्त में प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवा रहे हैं.
दोनों केंद्रों का मकसद एक ही है ग़रीब विद्यार्थियों को मुफ़्त में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराना.
सरकारी संस्था या निज़ी संस्था में नौकरी के कम अवसर के डर से बच्चे मदरसे छोड़ रहे थे, लेकिन मौलाना वली रहमानी की इस कोशिश से यहां एक बार फिर से बच्चे पढ़ने आ रहे हैं.
कामयाब छात्र
ग़रीब मुस्लिम के बच्चों के लिए यह एक वरदान साबित हो रहा है.
अभ्यानंद कहते हैं, “हमारे देश में कोई भी प्रतियोगिता परीक्षा हो बहुत ज़्यादा परीक्षार्थी होने के कारण इसमें कुछ ही सफल होते हैं जिससे परीक्षार्थी काफ़ी भयभीत रहते हैं.”
रहमानी-30 में पढ़ रहे विद्यार्थियों के बारे वे कहते हैं कि वहां पढ़ रहे बच्चे काफ़ी ग़रीब हैं, लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए दृढ़संकल्प हैं. अगर वे लोग ऐसा नहीं करते हैं तो समाजिक और आर्थिक रुप से पिछड़े ही रह जाएंगे.
रहमानी-30 के एक छात्र इरफ़ान आलम जिसकी उम्र मात्र 15 वर्ष है, 2011 की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. उनके पिताजी गांव में नाई हैं.
इरफ़ान आलम कहते हैं, “मैं अपनी ज़िंदगी में कुछ करना चहता हूं, कुछ बनकर दिखाना चाहता हूं.”
मौलाना वली रहमानी कहते हैं, “विद्यार्थियों का एक साथ रहना, खाना और पढ़ाई करना मदरसा का मूलमत्र है. यहां कोई भेदभाव नहीं है, सब बराबर है.”
मैं अपने ज़िंदगी में कुछ करना चहता हूं, कुछ बनकर दिखाना चाहता हूं.
इरफ़ान आलम, छात्र
रहमानी-30 के पहले बैच से सफल हुए सद्दाम अनवर अब आईआईटी दिल्ली में पढ़ाई कर रहे हैं.
सद्दाम अनवर कहते हैं, “यहां आकर मेरा सपना सच हो गया है. मैं नहीं समझता हूं कि मैं दूसरे छात्रों से अलग हूं.”
भारत में मुस्लिम समुदाय को समान्य रुप से रूढ़िवादी, ग़रीब और कम शिक्षित कहा जाता है.
लेकिन बिहार की राजधानी में एक छोटी सी पहल से ऐसी धारणाओं को तोड़नें की कोशिश की जा रही है.
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